वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर के निर्माण के लिए मंदिर के फंड का उपयोग करने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है. यह मामला अब 29 जुलाई को सुना जाएगा. कोर्ट ने इस बात को रिकॉर्ड पर लिया कि यूपी सरकार एक अध्यादेश लाकर मंदिर से जुड़ी व्यवस्था एक ट्रस्ट को सौंप चुकी है. साथ ही, राज्य सरकार से यह भी कहा कि वह लिखित जवाब दाखिल करे.
ध्यान रहे कि कॉरिडोर के निर्माण के लिए मंदिर फंड के 500 करोड़ रुपए के इस्तेमाल का फैसला 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ही दिया था. कोर्ट ने शर्त रखी थी कि अधिगृहित की हुई जमीन देवता या मंदिर ट्रस्ट के नाम से रजिस्टर्ड की जाए. मंदिर के एक सेवायत ने याचिका दायर कर कहा था कि मामले में उसका पक्ष नहीं सुना गया. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस याचिका का खड़ा विरोध किया.
राज्य सरकार के लिए पेश वकील ने जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वह एक अध्यादेश लाई है. इस अध्यादेश के जरिए मंदिर से जुड़े मामले एक ट्रस्ट को सौंप दिए गए. राज्य सरकार खुद मंदिर के फंड का इस्तेमाल नहीं करेगी इसलिए, अब इस तरह की याचिका निरर्थक है.
बेंच की अध्यक्षता कर रहीं जस्टिस नागरत्ना ने इस बात पर सवाल उठाए कि मंदिर के सेवायतों के निजी विवाद में राज्य सरकार कैसे पार्टी बन गई. जस्टिस नागरत्ना का कहना था कि राज्य सरकार के दखल के बाद ही उसे मंदिर के फंड का इस्तेमाल करने की अनुमति मिली, लेकिन बेंच के दूसरे सदस्य जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि मामले में फैसला दिया जा चुका है. अगर कोई सहमत न हो तो पुनर्विचार याचिका दाखिल करे. इस तरह कोई आवेदन दाखिल कर फैसले को नहीं बदलवाया जा सकता.
जस्टिस शर्मा की बात से जस्टिस नागरत्ना ने भी सहमति जताई. उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने कहा कि सरकार ने जो ट्रस्ट बनाया है, उसमें मंदिर के सेवायतों को जगह दी गई है. कॉरिडोर बनाने के लिए फंड का इस्तेमाल ट्रस्ट ही करेगा. इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई टाल दी. याचिकाकर्ता ने अंतरिम रोक की मांग रखी, लेकिन कोर्ट ने ऐसा आदेश नहीं दिया.
यह भी पढ़ें:-
तलाक के लिए आए कपल को सुप्रीम कोर्ट ने दी दिल छूने वाली सलाह, कहा- डिनर डेट पर जाएं, इंतजाम हम…