Maharashtra News: होटल में जलकर मरे थे 8 लोग, अब BMC परिजनों को देगा 50-50 लाख रुपए, बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश

by Carbonmedia
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Bombay High Court on 2015 Fire Case: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) को आदेश दिया कि वह 2015 में होटल में लगी आग में मारे गये आठ लोगों के परिजनों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा दे. कोर्ट ने बीएमसी पर कर्तव्य का पालन करने में पूरी तरह विफल रहने का आरोप भी लगाया.
क्या था किनारा अग्निकांड ?
कुर्ला स्थित ‘होटल सिटी किनारा’ में 16 अक्टूबर, 2015 को आग लग गई थी, जिसमें आठ लोगों की मौत हो गई थी. मृतकों में से सात 18-20 वर्ष की आयु के छात्र थे और आठवां पीड़ित विरार का 31-वर्षीय डिजाइन इंजीनियर था. हाई कोर्ट पीड़ितों के माता-पिताओं की उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें लोकायुक्त के फरवरी 2017 के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी. लोकायुक्त ने आग की घटना की जांच का अनुरोध खारिज कर दिया था.
बीएमसी को कब तक देना होगा मुआवजा?
लोकायुक्त ने उनकी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि प्रत्येक को एक-एक लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है. पीड़ित परिवारों ने मुआवजा राशि बढ़ाने की मांग की. हाई कोर्ट ने मंगलवार को अपने फैसले में बीएमसी को 12 सप्ताह के भीतर प्रत्येक पीड़ित के परिवार को 50 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा, ‘‘कार्रवाई करने में बीएमसी की विफलता के कारण होटल किनारा में अवैध गतिविधि बेरोकटोक जारी रही और अंततः आग की घटना घटित हुई तथा लोगों की जान चली गई.’’
बीएमसी को ठहराया गया जिम्मेदार 
न्यायमूर्ति बी. पी. कोलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनीवाला की पीठ ने कहा कि यह “चौंकाने वाला” है कि बीएमसी होटल के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू करने में विफल रही, जबकि उसे पता था कि होटल के पास अग्निशमन विभाग से अपेक्षित अनुमति नहीं है. न्यायालय ने कहा, ‘‘अगर बीएमसी ने तुरंत कार्रवाई की होती, तो आग की घटना निश्चित रूप से नहीं होती.’’
पीठ ने कहा, ‘‘बीएमसी द्वारा बरती गयी लापरवाही और वैधानिक कर्तव्यों का उल्लंघन आग का एक संभावित कारण रहा और नगर निकाय को उसके अधिकारियों के कृत्य और चूक के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है.’’ कोर्ट ने कहा कि आठ लोगों की जान जाने से उनके परिवारों के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का घोर उल्लंघन हुआ है.
दोषियों पर कार्रवाई
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि होटल ने लाइसेंस की कई शर्तों का उल्लंघन किया है, जिसमें ‘मेजेनाइन फ्लोर’ पर एक सेवा क्षेत्र का संचालन करना शामिल है. इस क्षेत्र को भंडारण क्षेत्र माना जाता था. पीठ ने कहा है कि होटल के पास अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) भी नहीं था. कोर्ट ने कहा कि होटल को अग्निशमन विभाग से कोई भी अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किए बिना खानपान और आवास संबंधी लाइसेंस दिया गया था. जिस वक्त आग लगी तब आठ पीड़ित इस तल पर बैठे थे और उनकी मृत्यु हो गई. हाई कोर्ट ने कहा कि होटल में आग और आठ व्यक्तियों की मृत्यु रोकने में लापरवाही बरतने के लिए नगर निकाय के अधिकारियों को कोई सजा नहीं भुगतनी पड़ी.
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