POSCO मामले के आरोपी को जमानत, हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप से किया इनकार, कहा- पीड़िता के पलटे बयान

by Carbonmedia
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Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक फैसले में एक व्यक्ति को POSCO अधिनियम के तहत बरी किए जाने के निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. हाई कोर्ट के जस्टिस अमित महाजन ने दिल्ली सरकार के सितंबर 2020 के निचली अदालत के फैसले को चुनोती देने वाली अर्जी को खारिज कर दिया. 
दरअसल यह मामला 12 साल से कम उम्र की बच्ची से कथित यौन उत्पीड़न से जुड़ा था. जिसके तहत आरोपी पर POSCO की धारा 9 और 10 के तहत मामला दर्ज किया गया था. हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में कोई भी विश्वसनीय और ठोस आधार नहीं है, लिहाजा मामले में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नही है,
गवाह के बयान में बड़ा बदलाव 
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस अमित महाजन ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी अदालत से आरोपी को बरी किए गए फैसले में केवल तभी हस्तक्षेप किया जाना चाहिए जब उस मामले में पर्याप्त और मजबूत कारण हो. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि निचली अदालत से आरोपी को बरी करने का फैसला उचित था.
क्योंकि बच्ची और उसके माता-पिता के बयानों में बड़ा अंतर देखने को मिला था. वही मामले में क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान पीड़िता ने अपने पहले लगाए गए आरोपों से पलटते हुए कहा था कि आरोपी ने सिर्फ थप्पड़ मारा था, यौन उत्पीड़न नहीं किया. पीड़िता के पिता ने भी कोर्ट में कहा कि उन्हें ऐसे किसी घटना की जानकारी उनकी पत्नी ने नहीं दी थी और ना ही उन्होंने पुलिस को कोई सूचना दी.
मां ने भी अपने बयान से किया इनकार
वही मामले में पीड़िता की मां ने भी अपने बयान में यह माना था कि बच्ची ने कभी भी आरोपी से यौन उत्पीड़न की जानकारी उन्हें नहीं दी. कोर्ट ने इसे अभियोजन पक्ष की बड़ी चूक करार दिया. हालाकि मामले में आरोपी के पक्ष में 2 पड़ोसियों ने भी गवाही दी और बताया कि आरोपी और पीड़िता की मां के बीच में किसी बात को लेकर कहां सुनी हुई थी.
जिस पर पुलिस बुलाया गया लेकिन उन्होंने भी किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न की घटना से साफ इनकार किया. दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि अभियोजन पक्ष के पास आरोपी को साबित करने के लिए कोई मेडिकल और फिजिकल सबूत नही थे. हाईकोर्ट ने कहा इस मामले में ना तो पीड़िता और ना ही उसके माता-पिता और ना ही कोई अन्य गवाह अभियोजन के पक्ष में खड़ा हुआ.
ऐसे में निचली अदालत का आरोपी को बरी करने का फैसला बिल्कुल सही था. इस फैसले के साथ हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की अपील को खारिज कर दिया और आरोपी को राहत दी.

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