अच्छी सड़क ‘जीवन के अधिकार’ का हिस्सा, सरकारों को उन्हें निजी ठेकेदारों को सौंपने की बजाय अपनी देखरेख में बनवाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

by Carbonmedia
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुरक्षित, अच्छे रखरखाव वाली और वाहन चलाने योग्य सड़क संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है. कोर्ट ने कहा है कि सड़क का जिम्मा निजी ठेकेदार पर छोड़ने की बजाय सरकार को सड़क बनाने का काम सीधे अपने नियंत्रण में करवाना चाहिए.
मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम और उमरी पूफ प्रतापपुर टोलेवेज प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी के विवाद का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम टिप्पणी की है. निजी कंपनी ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे बी पारडीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया.
मामला 5 जनवरी, 2012 को निगम और निजी कंपनी के बीच हुए एग्रीमेंट से जुड़ा है. यह समझौता उमरी-पूफ-प्रतापपुर सड़क को बनाने, संचालन करने और बाद में सरकार को सौंप देने का था. कंपनी ने इसमें अनुमान से अधिक लागत लग जाने का दावा किया था. परियोजना की कुल लागत 73.68 करोड़ रुपए थी, लेकिन कंपनी ने देरी और दोबारा डिजाइन बनाने जैसी बातों के चलते 280 करोड़ रुपए का दावा किया था.
निजी कंपनी एग्रीमेंट के एक क्लॉज को आधार बनाते हुए विवाद को मध्यस्थता के लिए इंटरनेशनल सेंटर फॉर अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रिजोल्यूशन (ICADR) में ले गई. सड़क विकास निगम ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की. निगम ने कहा कि 1983 के मध्य प्रदेश मध्यस्थम अधिकरण अधिनियम के तहत राज्य में आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल बनाया गया है. यह मामला वहीं चलना चाहिए.
हाई कोर्ट ने निगम के दावे को सही ठहराया और कंपनी की तरफ से ICADR में शुरू की गई मध्यस्थता कार्यवाही को रद्द कर दिया. इसका विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची कंपनी ने हाई कोर्ट की सुनवाई को तकनीकी रूप से गलत बताया. कंपनी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत उसे ‘राज्य’ नहीं माना जा सकता इसलिए, उसके विरुद्ध रिट याचिका नहीं हो सकती थी. 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कंपनी एक निजी संस्था जरूर है, लेकिन जिस काम को लेकर सारा विवाद है वह निजी नहीं था. सड़क परियोजना सार्वजनिक थी. ऐसे में हाई कोर्ट ने रिट याचिका स्वीकार कर कोई गलती नहीं की. 

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