डायरेक्टर, प्रोड्यूसर ओम राउत ने अपने करियर की पहली और दूसरी फिल्म ही अवॉर्ड विनिंग बनाई थी। बड़े स्केल और बड़े स्टारकास्ट के साथ जब आदिपुरुष लेकर आए तो ये फिल्म ऑडियंस को पसंद नहीं आई। इस फिल्म और उनके स्टार्स को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। फिलहाल बतौर प्रोड्यूसर ओम की ‘इंस्पेक्टर झेंडे’ नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है। मनोज बाजपेयी स्टारर इस फिल्म की तारीफ भी हो रही है। ओम ने दैनिक भास्कर से बातचीत में अपनी पहली फिल्म ‘लोकमान्य एक युगपुरुष’, ‘तानाजी’ और ‘आदिपुरुष’ की असफलता पर बात की है। आप अमेरिका में एमटीवी में यूथ बेस्ड शो कर रहे थे। लेकिन फिर ऐसे लीजेंड पर फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया? मेरे पिता जी जर्नलिस्ट थे। लोकमान्य तिलक और उनकी सीख तो मेरे पास बचपन से ही थी। जब हम लोकमान्य तिलक की बात करते हैं, जब उनके बारे में सीखते हैं, तो उनकी व्यक्तित्व इतना पावरफुल है कि आपको इम्पैक्ट करता है। आपका बचपन आपको एडल्टहुड में काफी सीखता है। पापा के जरिए लोकमान्य तिलक जी का मेरे ऊपर बहुत ज्यादा प्रभाव रहा। कहीं ना कहीं हमारी जड़ें समान है। मैं मुंबई का लड़का हूं। यही मराठी घर में पला-बढ़ा हूं। घर में जो भी सीखा और देखा वो आखिरी तक रहेगा। आपके घर में बचपन में जो तालीम मिली है, वो हमेशा साथ रहेगा। यूथ बेस्ड शो से ऐतिहासिक फिल्में बनाने में मुझे नहीं लगता कि मेरे अंदर कुछ बदलाव आया है। हां, वापसी जरूरी हुई है। आपको नहीं लगता कि इतिहास के गुमनाम हीरो पर फिल्म बनाना ज्यादा मुश्किल है? ‘तानाजी‘ फिल्म देखकर लोगों को उनके बारे में पता चला। जब मैं अमेरिका में एमटीवी में काम कर रहा था, तब मैंने अमेरिकी फिल्ममेकर जैक स्नाइडर की फिल्म ‘300’ देखी थी। मेरा एक दोस्त है वलारी। हम एक ही कॉलेज में और एमटीवी में भी साथ काम कर रहे थे। उसकी हेरिटेज ग्रीक है। वो मुझे बार-बार फिल्म ‘300’ के बारे में बताता था। वो कहता था कि यार हमारे वॉरियर की फिल्म आ रही है। हमें इस फिल्म को देखना चाहिए। इस फिल्म के रिलीज से पहले मुझे वो स्पार्टन की कहानियां सुनता था। वो भी ओरेकल के आइडिया के बारे में बताता था। वो अपने कल्चर से बहुत ज्यादा प्रभावित था। फिल्म आई तो हम दोनों ऑफिस के बाद देखने पहुंचे। मैं उस फिल्म को देखकर पागल हो गया। मैंने उससे कहा कि भाई जैक स्नाइडर ने ये तो जबरदस्त फिल्म बनाई है। मैं और वो चलते-चलते स्टेशन की तरफ जा रहे थे। मैंने उससे कहा कि हमारे महाराष्ट्र में भी एक ऐसी स्टोरी है। उनका त्याग भी बहुत बड़ा है। मैं उनके ऊपर ऐसी ही एक फिल्म बनाना चाहूंगा, जिससे हमारी संस्कृति को मुकाम मिले। तानाजी के त्याग को पूरी दुनिया देखे। जब ये फिल्म रिलीज हुई और इसे लोगों ने खूब प्यारा दिया। फिल्म ने जब 100 करोड़ का आंकड़ा छुआ तो मुझे अजय देवगन सर का कॉल आया। उन्होंने मुझे बधाई दी। तभी मेरे मन में आया कि तानाजी अब गुमनाम नायक नहीं रहे। इससे पहले आपने मराठी फिल्म ‘लोकमान्य एक युगपुरुष’ बनाई थी। इसे बनाने में किस तरह का मुश्किलें आईं? मैं आपको बताऊं, अभी हम जिस कमरे में बैठकर इंटरव्यू कर रहे हैं। इससे आधे कमरे में ये फिल्म शूट हुई है। उस वक्त मेरे पास न तो पैसे थे और न ही जगह। मेरे पास 340 स्क्वायर फीट का पुराना छोटा सा घर था, जिसे मैंने ऑफिस बना दिया। मैं अपने मम्मी-पापा घर रहने चला गया। उसी पुराने में घर में प्रोडक्शन-डायरेक्शन मीटिंग, कास्टिंग होती थी। वहीं, पर ट्रायल और फिल्म को एडिट किया गया। एक बहुत ही छोटे से एरिया में बैठकर हम सबने वो फिल्म बनाई थी और अच्छी बन गई। मुश्किलें तो बहुत आईं क्योंकि सपना बड़ा था। इतने बड़े स्केल पर उस दौर को दिखाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे। हमने जिस बजट में इस फिल्म को बनाया है, वो नंबर मैं बोल भी नहीं सकता क्योंकि वो बहुत छोटा नंबर है। ऐसी सिचुएशन में इस तरह की फिल्म बनाना चैलेंजिंग था। मेरा एक दोस्त है, जो बड़ी-बड़ी हिंदी फिल्में करता है। मैंने उसे स्क्रिप्ट सुनाई। उसने मुझसे कहा कि वो अपने प्रोडक्शन टीम को स्क्रिप्ट दे देता है ताकि वो बजट बनाकर दे देंगे। उसकी प्रोडक्शन टीम ने 75 करोड़ रुपए का बजट बनाकर दिया था। मैंने कहा इसका तो 10 फीसदी भी मेरे पास नहीं है। हमने 10 फीसदी से भी बहुत कम पैसे में इस फिल्म को बना दिया। चैलेंज हमेशा ही रहते हैं, चाहे वो छोटी बजट की फिल्म हो या बड़ी बजट की। मैं हमेशा कहता हूं कि अपनी हर फिल्म ऐसे बनाओ जैसे वो तुम्हारी आखिरी फिल्म हो। पता नहीं कि ऊपर वाला दूसरी फिल्म बनाने का मौका देगा या नहीं। पहली फिल्म ‘लोकमान्य एक युगपुरुष’ के लिए कोई ऐसी तारीफ जो अब तक आपको याद हो? जब मैं ‘लोकमान्य एक युगपुरुष’ फिल्म बना रहा था, तब मेरे बाल लंबे थे। गोटी स्टाइल में दाढ़ी रखता था, शॉर्ट्स पहनकर घूमता था। सबको लगता था कि एमटीवी वाला अमेरिकन लड़का है और शायद मैं था भी। जब मैं डॉक्टर दीपक तिलक के पास गया, जो कि लोकमान्य तिलक जी के वंशज हैं। उन्होंने कहा कि इसे हम फिल्म बनाने का परमिशन कैसे दें? मुझे ये बात बाद में बताई गई। दूसरी मीटिंग में जब मैंने उन्हें कहानी का नेरेशन दिया तो उन्हें सुनकर बहुत अच्छा लगा। रिलीज के वक्त उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें देखकर लगा नहीं कि तुम ऐसी फिल्म बनाओगे। दूसरा रिस्पांस मुझे ऑडियंस का मिला। मैं ऑडियंस का रिएक्शन जानने के लिए सिनेमा हॉल में चला जाता हूं। इस फिल्म के रिलीज के बाद मैं और मेरा एक दोस्त मुंबई से पुणे गए थे। हम लोग पुणे में एक थिएटर के बाहर खड़े थे। शो शुरू होने वाला था और हम दोनों इंतजार कर रहे थे कि जब तिलक जी का इंट्रोडक्शन सीन आएगा तो अंदर जाकर ऑडियंस का रिएक्शन देखेंगे। हमने देखा कि वहां पर फिल्म का टिकट ब्लैक में बिक रहा था। ब्लैक टिकट बेचने वाला हमारे पास भी आया और एक दाम बताकर बोला कि इतने में ले लो। हमने मना कर दिया। जैसे ही फिल्म शुरू हुई, वो फिर से हमारे पास आया और बोला कि 150 में टिकट ले लो। हमने फिर से मना कर दिया तो उसने कहा कैसे यूथ हो? ऐसी फिल्म देखनी चाहिए। ये सुनकर मेरे और मेरा दोस्त के चेहरे पर स्माइल थी। फिल्म ‘तानाजी’ के लिए मिला कोई कॉम्पलीमेंट, जो आप बताना चाहेंगे? दो-चार कॉम्लीमेंट है लेकिन मैं बता नहीं पाऊंगा। हालांकि, मेरे लिए सबसे बड़ी तारीफ वो है, जो अजय सर ने फिल्म देखकर दी थी। अजय सर ने फिल्म को ट्रायल में देखा था और कहा था कि तुम्हारी फिल्म तो हिट है। मेरे लिए सबसे बड़ी बात वही थी। उन्होंने मुझे मेरी पहली हिंदी फिल्म दी। उन्होंने न सिर्फ उसमें काम किया बल्कि उन्होंने फिल्म को प्रोड्यूस भी किया। उनका सपोर्ट और तारीफ मेरे लिए सबसे बड़ी है। आपकी पहली और दूसरी फिल्म ने इतिहास रचा। तीसरी फिल्म ‘आदिपुरुष’ के जरिए आपने अपनी पूरी कोशिश की लेकिन वैसा रिस्पांस नहीं मिला। विफलता से कैसे डील करते हैं? देखिए, सफलता और विफलता दोनों से परेशान नहीं होना चाहिए। अगर आप सक्सेस से आप बदल गए तो यानी आपका कोर खराब है। जैसा कि अजय सर कहते हैं सक्सेस से इंसान बदलता नहीं बल्कि उसकी सच्चाई बाहर आती है। वैसा ही असफलता से परेशान नहीं होना चाहिए। अगर सफलता आपको सिखाती है तो असफलता उससे कहीं ज्यादा सिखाती है। जब आप कुछ चीजें करते हो और वो सफल हो जाती है तो आपको सीखते हैं। आपको लगता है कि आपने जो ट्राई किया वो काम कर गया। लेकिन असफलता से आप सीखते हैं कि क्या नहीं करना चाहिए। असफलता से आपको अपनी गलती को ठीक करने का मौका मिलना चाहिए। आपको अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और उसे ठीक करके आगे बढ़ना चाहिए। अगर इंसान ऐसा करता है, तभी उसका मतलब है। इस सवाल का दूसरा जवाब मैं ये दूंगा कि सफलता के बाद आपके फोन कॉल का जल्दी जवाब मिलता है। आपके मैसेज का तुरंत रिप्लाई आता है। असफलता के बाद थोड़ा समय लग जाता है। बस इतना सा फर्क है। काम आप उतना ही और उसी लगाव से करते हो।
‘असफलता इंसान को ज्यादा सिखाती है’:ओम राउत आदिपुरुष की विफलता पर बोले- इंडस्ट्री में सफलता के बाद कॉल का जल्दी जवाब मिलता है
1