‘असम और बंगाल की तेजी से बदलती आबादी टाइम बम की तरह’, बोले तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि

by Carbonmedia
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तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने मंगलवार (29 जुलाई, 2025) को असम और पश्चिम बंगाल समेत देश के कुछ हिस्सों में तेजी से बदलती आबादी को लेकर चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि जनसंख्या में हो रहा ये बदलाव टाइम बम की तरह है और इसका समाधान खोजने की जरूरत है.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार राज्यपाल ने पूछा, ‘क्या किसी को पिछले 30-40 सालों में असम, पश्चिम बंगाल और पूर्वांचल (उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्से) में हुए जनसांख्यिकी बदलावों की चिंता है? क्या आज कोई यह अंदाजा लगा सकता है कि आने वाले 50 सालों में इन इलाकों में देश के बंटवारे का काम नहीं होगा?’
उन्होंने कहा, ‘हमें कुछ इलाकों में बढ़ती संवेदनशील जनसांख्यिकी और उसके भविष्य पर एक अध्ययन करना चाहिए. यह समस्या एक टाइम बम की तरह है. हमें यह सोचना होगा कि भविष्य में हम इस समस्या से कैसे निपटेंगे. आज से ही इसका समाधान ढूंढना शुरू कर देना चाहिए.’
महाराष्ट्र और कुछ और राज्यों में भाषा को लेकर चल रहे विवाद और हिंदी थोपे जाने के दावों के बीच राज्यपाल आर एन रवि ने कहा कि भाषा के नाम पर कटुता रखना भारत के चरित्र या संस्कृति में नहीं है. उन्होंने कहा कि किसी को भी किसी पर भाषा को थोपना नहीं चाहिए. उन्होंने कहा कि इस देश ने हमेशा बाहरी हमलों से लड़ने में कामयाबी हासिल की, लेकिन जब अंदर के मामलों की बात आती है तो हमें इतिहास को देखना चाहिए.
आर एन रवि ने कहा, ‘यह देश हमेशा बाहरी आक्रमणों से लड़ने में कामयाब रहा है, लेकिन जब आंतरिक मामलों की बात आती है, तो अतीत में क्या हुआ था? 1947 में आंतरिक उथल-पुथल के कारण भारत का विभाजन हुआ था. एक विचारधारा को मानने वाले लोगों ने घोषणा की कि वे हम सब के साथ नहीं रहना चाहते. इस विचारधारा ने हमारे देश को तोड़ दिया.’
आर एन रवि के अनुसार, किसी देश की सैन्य शक्ति आंतरिक अशांति से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं होती. उन्होंने तर्क दिया कि अगर सोवियत संघ की सैन्य शक्ति आंतरिक समस्याओं से निपटने के लिए पर्याप्त होती, तो 1991 में उसका विघटन नहीं होता.
महाराष्ट्र और कर्नाटक में भाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच, आर एन रवि ने कहा कि भाषा के नाम पर कटुता रखना भारत का चरित्र नहीं है. राज्यपाल ने कहा, ‘आजादी के बाद, हम आपस में लड़ने लगे. इसका एक कारण भाषा थी. उन्होंने (भाषाई पहचान के आधार पर राज्यों की वकालत करने वालों ने) इसे भाषाई राष्ट्रवाद कहा.’
उन्होंने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व ने बार-बार स्पष्ट किया है कि सभी भारतीय भाषाएं समान स्तर की हैं और समान सम्मान की पात्र हैं. उन्होंने कहा, ‘केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई मौकों पर कहा है कि सभी भारतीय भाषाएं हमारी राष्ट्रीय भाषाएं हैं और हम उनमें से प्रत्येक का सम्मान करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि प्रत्येक राज्य में कम से कम प्राथमिक शिक्षा स्थानीय भाषाओं में दी जानी चाहिए.’ राज्यपाल ने कहा कि भाषा के नाम पर लोगों के बीच कटुता भारत के लोकाचार का हिस्सा नहीं है.

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