असम के बुलडोजर एक्शन का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, CJI बोले- सुनवाई तो करेंगे पर सरकारी जमीन हुई तो…

by Carbonmedia
()

असम के गोवालपाड़ा जिले में राज्य सरकार के बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. याचिका में कहा गया है कि 600 से ज्यादा परिवारों को हटाने के लिए शुरू किया गया बुलडोजर अभियान अदालत के निर्देशों का उल्लंघन है. याचिका में असम सरकार के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई का अनुरोध किया गया है. 
मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने असम के मुख्य सचिव और अन्य को दो हफ्ते के अंदर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया. सीजेआई बीआर गवई ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर अमस सरकार ने बचाव में जमीन को सरकारी बताया तो कोर्ट का आदेश सरकारी जमीन पर लागू नहीं होगा. याचिका में आरोप लगाया गया है कि जून में बड़े पैमाने पर बेदखली और ध्वस्तीकरण अभियान से 667 से ज्यादा परिवार प्रभावित हुए.
गोवालपाड़ा जिले के आठ निवासियों ने वकील अदील अहमद के माध्यम से याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने कहा कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई व्यक्तिगत सुनवाई और अपील या न्यायिक समीक्षा के लिए पर्याप्त समय दिए बिना की गई. याचिका में कहा गया, ‘संबंधित अधिकारियों ने बेदखली अभियान का भेदभावपूर्ण कार्यान्वयन और संचालन किया… बेदखली और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई मुख्य रूप से अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर की गई, जबकि इसी तरह के मामलों में बहुसंख्यक समुदाय के लोगों को अछूता छोड़ दिया गया.’
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर एडवोकेट हेगड़े संजय हेगड़े ने कहा कि सिर्फ दो दिनों का नोटिस दिया गया और उसके तुरंत बाद ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कर दी गई. मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने पूछा, ‘आप हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते?’ संजय हेगड़े ने कहा कि कई लोग हाईकोर्ट गए थे और वहां भी पुनर्वास के बारे में ही याचिका दायर की गई थी.
उन्होंने कहा कि अतिक्रमणकारियों को भी कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल करने का अधिकार है. संजय हेगड़े ने कहा, ‘ये 667 गरीब परिवार हैं जो 60 से 70 सालों से उस जमीन पर रह रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि ब्रह्मपुत्र समय-समय पर अपना रास्ता बदलती रहती है और लोगों को ऊंचाई वाले स्थानों पर जाना पड़ता है.
बेंच ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘हम नोटिस जारी करना चाहते हैं, लेकिन अगर सरकार यह कहकर बचाव करती है कि यह सरकारी जमीन है तो हम पहले ही कह चुके हैं कि हमारा आदेश सरकार के स्वामित्व वाली जमीन, सड़कों, सार्वजनिक स्थानों, नदियों और जलाशयों पर किसी भी अतिक्रमण पर लागू नहीं होगा.’
सुप्रीम कोर्ट की ओर से दायर याचिका पर नोटिस जारी करने की बात कहने के बाद संजय हेगड़े ने यथास्थिति बनाए रखने का अनुरोध किया. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘अगर यह सरकारी जमीन है, तो यह लागू नहीं होगा. हम अपने निर्णय के विपरीत कोई आदेश पारित नहीं कर सकते.’
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर, 2024 के फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें अदालत ने देशभर के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए थे. निर्देश में पूर्व में कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना और पीड़ित पक्ष को जवाब देने के लिए 15 दिनों का समय दिए बिना संपत्ति को गिराने पर रोक लगा दी गई थी.
याचिकाकर्ताओं के बारे में कहा गया था कि वे पिछले 60 सालों से हसीलाबील राजस्व गांव में अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं और हाल तक किसी भी सरकारी प्राधिकरण की ओर से कोई आपत्ति नहीं उठाई गई थी. याचिका में कहा गया है कि 13 जून को प्राधिकरण ने सभी निवासियों को 15 जून तक निर्माण हटाने का निर्देश देते हुए एक नोटिस जारी किया था.
याचिका में यह भी बताया गया कि निवासियों को पर्याप्त समय या सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया और नोटिस मनमाने तरीके से जारी किया गया. कुछ ही दिनों में अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर बेदखली और ध्वस्तीकरण अभियान चलाया और यह कार्य बिना कोई नया कारण बताओ नोटिस जारी किए या व्यक्तिगत सुनवाई किए बिना किया गया.
याचिका में ध्वस्त किए गए घरों, स्कूलों आदि के लिए मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के माध्यम से अंतरिम राहत के निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश पारित करते हुए नवंबर 2024 के अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ये निर्देश सार्वजनिक स्थानों जैसे सड़कों, गलियों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों से सटे या नदी या जल स्रोतों में अनधिकृत संरचनाओं के मामले में लागू नहीं होंगे, सिवाय उन मामलों के जहां ध्वस्तीकरण का अदालती आदेश हो.

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating / 5. Vote count:

No votes so far! Be the first to rate this post.

Related Articles

Leave a Comment