‘आप हिन्दुओं को तोड़ने के लिए खड़े हो गए..’, इटावा मामले को लेकर अखिलेश यादव पर भड़के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

by Carbonmedia
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Etawah News: यूपी के इटावा कथावाचकों के मामले पर बहस के बीच ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अखिलेश यादव तीखा हमला किया और कहा कि हमारे देश में राजनेता जिस तरह से बांटों और राज करो की सियासत कर रहे हैं वो इस घटना के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है. आप पीडीए के जरिए हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए खड़े हो, लेकिन हमने अपने धर्म का पालन किया है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस मामले हो रही राजनीति को लेकर अखिलेश यादव पर निशाना साधा और कहा कि बांटो और राज करो वाले राजनेता इस इटावा घटना के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं, जो राजनीतिक सफलता चाहते हैं. उन्होंने कहा कि सैकड़ों वर्ष की गुलामी के बाद भी लोगों ने सनातन धर्म नहीं छोड़ा. ऐसे लोगों का खोखला झूठा विचार है. 
सपा के पीडीए फॉर्मूले को लेकर भी उठाया सवालअखिलेश यादव और PDA पर निशाना साधते हुए शंकराचार्य ने कहा कि आप हिंदू समाज को तोड़ने के लिए खड़े हो गए. आप अल्पसंख्यक के साथ हमें खड़ा करना चाहते हैं. अखिलेश जी हजार साल का अनुभव देख लो आपकी तरह नेता नहीं थे. वह तो शासक थे हमारे ऊपर चढ़े हुए थे लेकिन, हमने अपने धर्म का पालन किया. हम उनके साथ नहीं आए, इतिहास उठाकर देख लीजिए.
उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव आप स्वप्न देख रहे हैं हम सनातनी हैं, सनातन के साथ खड़े रहेंगे. कुछ लोगों को तोड़कर आप PDA समीकरण बनाना चाहते हो तो ये ज्यादा दिन नहीं चलेगा. उन्होंने कहा कि वैसे हमें तो कोई राजनीति नहीं करनी है और ना ही राजनीतिक समीकरण में हमारी कोई रुचि है. लेकिन, हमारे परमात्मा द्वारा भी बनाया गया एक समीकरण है, जो वेदों से चला आ रहा है. वह समीकरण है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र. अंग्रेजी हिंदी वर्ण अनुसार BKVS.
हिन्दी भाषा पर मचे संग्राम पर कही ये बातमहाराष्ट्र में चल रहे हिंदी भाषा पर सियासी संग्राम पर शंकराचार्य ने निशाना साधा और कहा कि क्या महाराष्ट्र का व्यक्ति कुएं का मेंढक ही बना रहेगा या बाहर भी निकलेगा. इसका मतलब आप महाराष्ट्र के लोगों को कूप मंडूक बनाना चाहते हैं. विश्व में और महाराष्ट्र के बाहर जाएगा तो किस भाषा में बात करेगा. हिंदी हमारे माथे की बिंदी है, इससे क्या दिक्कत है. हिंदी कहीं से भी मराठी भाषा को डोमिनेट नहीं करती. और मराठी भाषा पूरे देश की भाषा हो नहीं सकती. 
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