आषाढ़ में कड़वा तेल क्यों लगाते हैं? जानिए इसका आयुर्वेद, धर्म और मौसम से संबंध

by Carbonmedia
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Ayurveda Monsoon Rituals: कहते हैं कि जब वर्षा की पहली बूंद गिरती है, शरीर और आत्मा दोनों को शुद्धिकरण की आवश्यकता होती है. आषाढ़ मास वर्षा ऋतु का आरंभ है लेकिन ये केवल मौसम का बदलाव नहीं, बल्कि एक ऋतु-चेतावनी है, शरीर में बढ़ते वात-दोष को संभालने, त्वचा को संक्रमण से बचाने और मन को स्थिर रखने का समय.
भारत की आयुर्वेदिक परंपरा और धार्मिक विधियों में आषाढ़ में सरसों, नीम या तिल जैसे कड़वे तेल से अभ्यंग (मालिश) का विशेष निर्देश मिलता है. यह केवल देह की मालिश नहीं, बल्कि एक गूढ़ शुद्धिकरण प्रक्रिया है.
आयुर्वेद क्यों कहता है कि आषाढ़ में तेल लगाना अनिवार्य है?चरक संहिता (सूत्रस्थान 5.6) का सूत्र कहता है किवर्षासु वातप्रकोपात स्निग्धाभ्यङ्गः प्रशस्यते.यानि वर्षा ऋतु में वात बढ़ता है, अतः स्निग्ध तेल से मालिश उत्तम है.
मुख्य कारण

वर्षा में वात और कफ दोष अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं
त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं, जिससे पसीना और गंदगी अंदर जम जाती है
रक्तसंचार मंद पड़ता है और मानसिक बेचैनी बढ़ती है

ऐसे में कड़वे तेल जैसे सरसों, नीम या करंज के तेल शरीर में गर्मी, संक्रमण निवारण और स्निग्धता (Aliphatic) देते हैं.
कड़वा तेल ही क्यों? सरसों, नीम और करंज का रहस्य

सरसों तेल तीक्ष्ण, उष्ण, वातहर जोड़ों के दर्द, त्वचा की ठंडीपन में लाभकारी
नीम तेल तिक्त, शीत, कृमिनाशक फंगल, दाद, खुजली, कीटाणु नाशक
करंज तेल कटु, कषाय, पित्तहर फोड़े-फुंसी और त्वचा रोगों में उपयुक्त

आयुर्वेद के अनुसार वातकफहरं तैलं तिक्तं कटुं च योजयेत. यानि वात-कफ विकारों में कटु-तिक्त तेल सर्वोत्तम हैं.
शनि देव और कड़वे तेल का संबंध क्या है?स्कंद पुराण (काशी खंड) में बताया गया है कि शनैश्चरप्रियं तैलं तेन देहे समाचरेत्. इसका अर्थ है कि शनि देव को तिल या सरसों का तेल अत्यंत प्रिय है.

आषाढ़ मास में शनि की स्थिति अक्सर प्रभावी मानी जाती है विशेषतः शनिवारों को
तेल से अभ्यंग कर शनिदेव को अर्पित करने पर दोष, रोग और बाधाएं शांत होती हैं

यही कारण है कि आषाढ़ के शनिवार को सरसों तेल से स्नान, फिर शनिदेव को तेल चढ़ाने की परंपरा है.
आषाढ़ में तेल मालिश कैसे और कब करें?
सही विधि

दिन: शनिवार, बुधवार और अमावस्या/पूर्णिमा
समय: सूर्योदय से पूर्व या संध्या से पहले
तेल को गुनगुना करें
सिर, हथेली, पैर, रीढ़ और नाभि के आसपास विशेष रूप से लगाएं
30–45 मिनट बाद उबटन या बेसन से स्नान करें

महिलाएं नीम या करंज का हल्का मिश्रण लें, अत्यधिक तीक्ष्ण तेल से त्वचा को जलन हो सकती है.
आधुनिक विज्ञान क्या कहता है?

सरसों तेल में मौजूद एलाइल आइसोथायोसायनेट त्वचा में रक्तसंचार को तेज करता है
नीम तेल में निंबिन व निंबिडोल जैसे तत्व एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल होते हैं
नियमित मालिश से नींद बेहतर होती है, हॉर्मोन संतुलित होते हैं और तनाव घटता है

परंपरा, चिकित्सा और ऊर्जाआषाढ़ में कड़वा तेल लगाना केवल एक घरेलू उपाय नहीं, यह शरीर की प्रकृति, ऋतु की गति और आत्मिक ऊर्जा की शुद्धि का संगम है. जब आप शनि को तेल चढ़ाते हैं, तो वास्तव में आप अपने भीतर के भय, विष और दोषों को दूर करने की प्रार्थना कर रहे होते हैं और जब आप शरीर पर तेल लगाते हैं, तो आप प्रकृति के साथ एक उपचारात्मक संवाद कर रहे होते हैं.
FAQQ1. क्या यह परंपरा केवल ग्रामीण क्षेत्रों में है?नहीं, यह शास्त्रों और आयुर्वेद में वर्णित है, जिसे आधुनिक लोग भी अपनाते हैं.
Q2. क्या डायबिटीज या उच्च रक्तचाप वालों को तेल लगाना चाहिए?सरल अभ्यंग (मालिश) लाभकारी है, लेकिन विशेष स्थितियों में वैद्य से परामर्श लें.
Q3. क्या नीम तेल चेहरे पर लगाया जा सकता है?संवेदनशील त्वचा पर हल्के मिश्रण में या चिकित्सकीय सलाह से ही प्रयोग करें.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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