UP News: उत्तर प्रदेश के इटावा में हुए कथावाचक वाले विवाद पर यूपी की राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है. अब इस मामले को यादव बनाम ब्राह्मण का रूप भी दिया जा रहा है. इस घटना के हर पहलू को देखने के बाद अब आपके मन में सवाल होगा कि शुद्ध रूप से ये मामला बदसलूकी और फरेब का है तो फिर इस पर सियासत की रोटी क्यों सेंकी जा रही है. तो इसका जवाब अब आपके सामने रखते हैं.
यूपी और बिहार उत्तर भारत के दो ऐसे राज्य हैं जहां की राजनीति शुद्ध रूप से जाति के आसपास घूमती है. बिना जाति की चर्चा के यहां की राजनीति अधूरी है. ऐसे में इस घटना को जातीय समीकरण से जोड़़कर भी देखा जा रहा है. 2027 की पिच तैयार करने की बात कही जा रही है तो सबसे पहले देखिये यूपी का जातीय गणित.
यूपी का जातीय गणित
सवर्ण यहां 18 फीसदी के करीब हैं ओबीसी की आबादी 42 फीसदी हैदलित 21 फीसदी हैंमुस्लिम आबादी 19 फीसदी है
सवर्णों के वोट बैंक पर पिछले 10-15 सालों से बीजेपी की एकतरफा पकड़ है. ओबीसी की बात करें तो इस समूह का वोट बंटा हुआ है. मौजूदा वक्त में समाजवादी पार्टी और एनडीए की बराबर की पकड़ इस OBC वोट बैंक पर है. जहां तक ब्राह्मण और यादव का सवाल है तो दोनों की आबादी आंकड़ों में बराबर है, यूपी में ब्राह्मण भी 10 फीसदी हैं और यादवों की संख्या भी 10 फीसदी है.
अखिलेश यादव लगाते हैं ब्राह्मणों के साथ वो भेदभाव का आरोप
मौजूदा वक्त में योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम हैं जो कि ठाकुर बिरादरी से आते हैं. जबकि ब्राह्मण समाज के ब्रजेश पाठक डिप्टी सीएम हैं. अखिलेश यादव मौजूदा सरकार पर लंबे समय से ये आरोप लगाते हैं कि ब्राह्मणों के साथ वो भेदभाव करती है. ब्राह्मण वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिये ही अखिलेश यादव नें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे को बनाया है.
2022 के चुनाव में सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक बने
आपको ये भी बता दें कि 2022 के चुनाव में सबसे ज्यादा जिस जाति के विधायक जीते थे वो ब्राह्मण जाति के ही थे. NDA से 46 ब्राह्मण विधायक बने थे, समाजवादी पार्टी से 5. जहां तक यादवों का सवाल है तो NDA के 3 यादव विधायक हैं जबकि समाजवादी पार्टी में 24 यादव विधायक 2022 में जीतकर विधानसभा पहुंचे.
2007 में सोशल इंजीनियरिंग करके मायावती ने ब्राह्मण वोट हासिल किया
ऐसा नहीं है कि ब्राह्मण वोट परंपरागत रूप से बीजेपी का कोर वोटर रहा है, 2007 में सोशल इंजीनियरिंग करके मायावती ने ब्राह्मण वोट अपने पाले में किया था. नतीजा ये रहा कि बीएसपी बंपर बहुमत से सत्ता में आई थी. इससे पहले और बाद के हर चुनाव में ब्राह्मण वोटर सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं. साल 2012 में जब अखिलेश सीएम बने थे तब चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 45 ब्राह्मणों को टिकट दिया जिसमें से 21 जीते थे. साल 2017 में मोदी लहर के बाद ब्राह्मण बीजेपी के साथ आ गए.
2027 की पिच को सेट करने की तैयारी
CSDS के मुताबिक 2017 में ब्राह्मणों के 83 फीसदी वोट बीजेपी को और 7 फीसदी एसपी को मिले थे, जबकि 2022 में ब्राह्मणों के 89 फीसदी वोट एनडीए को मिले थे. समाजवादी पार्टी को महज 6 फीसदी ब्राह्मणों ने तब वोट किया था. साल 2017 में यादवों के 10 फीसदी वोट बीजेपी को और 68 फीसदी वोट एसपी को मिले थे. साल 2022 में यादवों की बात करें तो 12 फीसदी यादवों ने बीजेपी को जबकि 83 फीसदी ने समाजवादी पार्टी को वोट किया था. यादव वोट पर परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी की पकड़ रही है. यही वजह है कि कथावाचक के इस विवाद को जातीय रंग देकर यूपी की राजनीति को गर्माने की कोशिश हो रही है, साल 2027 की पिच को सेट करने की तैयारी की जा रही है.
इटावा कथावाचक विवाद: 2027 का रण…यूपी में यादव बनाम ब्राह्मण? समझिए पूरा जातीय गणित
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