इलाज के समय समलैंगिक पार्टनर को दिया जाए फैसला लेने का अधिकार… दिल्ली HC ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस

by Carbonmedia
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दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) को नोटिस जारी करते हुए समलैंगिक जोड़ों को एक-दूसरे के मेडिकल इलाज के समय फैसला लेने के अधिकार देने की मांग वाली याचिका पर जवाब मांगा है. दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस सचिन दत्ता की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय, कानून मंत्रालय और नेशनल मेडिकल कॉउंसिल (NMC) से जवाब तलब करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 27 अक्टूबर तय की है.
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में क्या कहा गया
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल याचिका के मुताबिक, याचिकाकर्ता एक समलैंगिक जोड़ा है, जो दिल्ली में साल 2018 से एक साथ रह रहा है. कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया कि जब उनके परिवार के लोग अलग-अलग राज्यों या देशों में रहते हैं तो किसी इमरजेंसी हालात में एक-दूसरे की देखभाल करना और मेडिकल संबंधी फैसला लेना मुश्किल हो जाता है. वर्तमान मेडिकल के नियमों के मुताबिक, केवल पति-पत्नी, माता-पिता या अभिभावक अथवा खुद मरीज को ही मेडिकल सहमति देने का अधिकार है.
याचिका में कानूनी कमियों का जिक्र
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल अर्जी में मेडकिल कॉउंसिल ऑफ रेगुलेशन एक्ट, 2002 का जिक्र करते हुए कहा गया कि यह केवल विषमलैंगिक दंपतियों को प्राथमिकता देती है. समलैंगिक या गैर-पारंपरिक संबंधों को कोई कानूनी मान्यता नहीं मिलने के कारण याचिकाकर्ता अपने साथी के लिए जरूरी मेडिकल फैसला नहीं ले सकते हैं. याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के आर्टिकल 14, आर्टिकल 19 और आर्टिकल 21 का उल्लंघन बताया है.
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल में की गई याचिका
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में कोर्ट से यह निर्देश देने की मांग की गई है कि सभी अस्पताल और डॉक्टर समलैंगिक जोड़ों को भी अधिकृत मेडिकल प्रतिनिधि मानें और अगर कोई समलैंगिक व्यक्ति अपने साथी को मेडिकल पावर ऑफ अटॉर्नी देता है तो उसे पूर्ण मान्यता दी जाए. याचिकाकर्ता के वकील ने दलील देते हुए कहा कि यह याचिका एक मौलिक और मानवीय आवश्यकता को उठाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था अहम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी, 2025 में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर पुनर्विचार से इनकार कर दिया था. हालांकि, कोर्ट ने सरकार को सुझाव दिया था कि एक हाई लेवल कमेटी बनाकर समलैंगिक जोड़ों को बुनियादी सामाजिक लाभ देने के उपायों पर विचार किया जाए. साथ ही यह भी कहा गया था कि LGBTQ+ समुदाय के खिलाफ भेदभाव नहीं होना चाहिए और उनकी यौन पहचान के आधार पर किसी भी सेवा से इनकार नहीं किया जा सकता.
यह भी पढ़ेः Land For Job Case: लालू यादव ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका, मुकदमा और चार्जशीट रद्द करने की मांग

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