उत्तरकाशी जिले के धराली में बीती 5 अगस्त को खीरगंगा सहित तिलवाड़ा, सुक्की, लिमचागाड़ और झाला गदेरे से आए करीब 14 लाख टन मलबे ने भारी तबाही मचाई थी. यह मलवा 16 हेक्टेयर क्षेत्र में फैल गया, जिससे इलाके को व्यापक नुकसान हुआ. अब मलबे को हटाने की चुनौती सरकार के सामने है. हर्षिल के तिलवाड़ा गधेरे में भी 2-3 लाख टन मलवा 5-7 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है.
मलबे के कारणों की जांच के लिए शासन ने वाडिया संस्थान, सीबीआरआई रुड़की, आईआईटी और भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग की टीमें गठित कीं. संयुक्त निदेशक जीडी प्रसाद, सहायक भू-वैज्ञानिक रवि नेगी और प्रदीप कुमार ने धराली में स्थिति का अध्ययन किया. रवि नेगी ने बताया कि मलवा 4500 मीटर की ऊंचाई से तेज ढलान के कारण नीचे आया. खीरगंगा के कैचमेंट एरिया में हवाई सर्वे के दौरान भारी मलवा दिखाई दिया. पहले बड़े बोल्डर और फिर मिट्टी, पानी व छोटे पत्थरों का मलबा आया.
हर्षिल में झील का खतरा
तिलवाड़ा गधेरे में मलबे के कारण भागीरथी नदी में एक बड़ी झील बन गई थी, जिसे बाद में चैनलाइज किया गया. विशेषज्ञों के अनुसार 12 साल पहले भी खीरगंगा में बाढ़ की घटना हुई थी. स्थानीय लोगों से मिली जानकारी ने इसकी पुष्टि की.
मलबे की मात्रा और प्रभाव
धराली: 12-14 लाख टन मलवा, 16 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित.
हर्षिल (तिलवाड़ा गधेरा): 2-3 लाख टन मलवा, 5-7 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित.
मलबे की ऊंचाई कई फीट तक है, जिसे हटाना प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण है.
आपदा प्रबंधन की स्थिति
आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, विशेषज्ञों की अंतिम रिपोर्ट का इंतजार है. इसके आधार पर आगे की कार्रवाई तय होगी. हवाई सर्वे और स्थलीय अध्ययन से मलबे के स्रोत और प्रभाव का आकलन किया जा रहा है.
उत्तरकाशी में आपदा के बाद से ही रेसक्यु टीमें लगीं हैं, सेना के साथ -साथ NDRF-SDRF की टीमें दिन रात लगी हुईं हैं. बड़ी संख्या में लोग अभी भी लापता हैं.