जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की ओर से हिंदी फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ की प्रदर्शनी पर रोक लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. कोर्ट की ओर से प्रदर्शनी पर रोक (स्टे) दिए जाने और सेंसर बोर्ड की तरफ से जारी सर्टिफिकेट पर पुनर्विचार करने को लेकर अपील दाखिल करने के निर्देश के अनुसार सोमवार (14 जुलाई, 2025) को मौलाना अरशद मदनी के अधिवक्ताओं ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के समक्ष अपील दाखिल कर दी है.
संभावना है कि मंत्रालय आने वाले कुछ दिनों में इस याचिका पर सुनवाई कर सकता है. इसी बीच फिल्म निर्माता ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में चुनौती दी है. आज फिल्म निर्माता के वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया की ओर से दी गई अपील पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने सुनवाई की पुष्टि की है.
समाज में नफरत और विभाजन को दे सकती बढ़ावा
मौलाना अरशद मदनी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में रविवार (13 जुलाई, 2025) रात ही याचिका दायर कर दी गई थी, यानि अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मौलाना अरशद मदनी के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के तर्क भी सुने जाएंगे. मौलाना मदनी की ओर से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में दाखिल याचिका में कहा गया है कि ‘उदयपुर फाइल्स’ जैसी फिल्में समाज में नफरत और विभाजन को बढ़ावा देती हैं और इसके प्रचार-प्रसार से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल हो सकती है.
याचिका में आगे लिखा गया है कि हमारा देश सदियों से गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक रहा है, जहां हिंदू-मुस्लिम एक साथ रहते आए हैं. ऐसी फिल्मों से देश की सांप्रदायिक एकता को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है. यह फिल्म पूर्णतः घृणा पर आधारित है और इसकी प्रदर्शनी से देश में शांति व्यवस्था प्रभावित हो सकती है.
नूपुर शर्मा के विवाद से भारत की बदनामी
याचिका में कहा गया कि सरकार को यह भी याद कराया गया है कि नूपुर शर्मा के विवादास्पद बयान के चलते भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले ही बहुत बदनामी हो चुकी है, जिस कारण भारत सरकार को राजनयिक स्तर पर स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा था कि भारत सभी धर्मों और समुदायों का सम्मान करता है. साथ ही, नूपुर शर्मा को उसके बयान के बाद बीजेपी प्रवक्ता के पद से हटाना पड़ा था. इन्हीं वजहों से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को आंशिक सुधार मिला था.
रिलीज पर रोक जारी
याचिका में यह भी कहा गया है कि इस फिल्म के निर्माता अमित जानी का अतीत और वर्तमान दोनों ही भड़काऊ गतिविधियों से भरा है. फिल्म में कई काल्पनिक बातें दिखाई गई हैं, जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है. नूपुर शर्मा से जुड़े विवाद को भी फिल्म में दर्शाया गया है, जिसके चलते देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे और विदेशों में भी आवाजें उठी थीं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि सेंसर बोर्ड की ओर से 55 दृश्य हटाने के बावजूद फिल्म का स्वरूप वही बना हुआ है और इसकी प्रचार गतिविधियों से देश में हिंसा फैल सकती है. यह फिल्म राष्ट्रहित में नहीं है, इसलिए इसे प्रदान किया गया सेंसर सर्टिफिकेट रद्द किया जाए. दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देशानुसार, सूचना और प्रसारण मंत्रालय को मौलाना अरशद मदनी की याचिका पर एक सप्ताह के भीतर सुनवाई कर निर्णय लेना होगा. इस बीच फिल्म की रिलीज पर रोक जारी रहेगी.
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