एंग्जायटी, डिप्रेशन और स्लीप मेडिसिन से बिगड़ रही मेंटल हेल्थ, इस स्टडी में हुआ खुलासा

by Carbonmedia
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हाल ही में हाल ही में जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ( जामा/ JAMA) में प्रकाशित एक गंभीर अध्ययन ने हमारे सामने एक चिंताजनक तस्वीर पेश की है. यह शोध बताता है कि 2008 से 2017 के बीच जन्मे बच्चों में अस्थमा और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जो भविष्य के लिए एक खतरे की घंटी है.
बचपन में सांसों पर संकट
स्टडी के अनुसार, पिछले कुछ साल के दौरान जन्मे बच्चों में अस्थमा की व्यापकता में वृद्धि देखी गई है. यह एक ऐसी पुरानी सांस संबंधी बीमारी है, जो बच्चों के दैनिक जीवन को प्रभावित कर सकती है. हालांकि अध्ययन में सीधे 1.5 करोड़ बच्चों में अस्थमा की आशंका का सटीक आंकड़ा नहीं बताया गया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि अस्थमा एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता बन गई है और इसकी व्यापकता बढ़ रही है.
अस्थमा बढ़ने के संभावित कारण

बढ़ता वायु प्रदूषण: गाड़ियों का धुआं, औद्योगिक उत्सर्जन और अन्य प्रदूषक तत्व बच्चों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
एलर्जी और पर्यावरणीय ट्रिगर्स: धूल के कण, पालतू जानवरों की रूसी, पराग और फफूंद जैसे एलर्जेन अस्थमा के हमलों को ट्रिगर कर सकते हैं.
हेरिडिटी: अगर परिवार में अस्थमा या एलर्जी की हिस्ट्री रही है तो बच्चों में इसका खतरा बढ़ जाता है.
बदलती लाइफस्टाइल: कम शारीरिक गतिविधि और घर के अंदर ज़्यादा समय बिताने से बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर पड़ सकता है.

मेंटल हेल्थ पर भी खतरा
जामा अध्ययन का एक और महत्वपूर्ण पहलू बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बढ़ता बोझ है.

स्ट्रेस और डिप्रेशन: बच्चों और किशोरों में स्ट्रेस और डिप्रेशन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. आज के बच्चों पर पढ़ाई का दबाव, सोशल मीडिया का तनाव और बदलती सामाजिक परिस्थितियां उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रही हैं. यह मानसिक तनाव न केवल उनके मन को प्रभावित करता है, बल्कि उनके शारीरिक स्वास्थ्य को भी बिगाड़ सकता है.
स्लीप मेडिसिन: बच्चों में नींद से जुड़ी दिक्कतें भी सामने आ रही हैं. कुछ मामलों में तो उन्हें नींद लाने वाली दवाओं का सहारा भी लेना पड़ रहा है. पर्याप्त और अच्छी नींद न मिलने से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास रुकता है, उनकी एकाग्रता बिगड़ती है और वे चिड़चिड़े हो सकते हैं.

यह खतरे की घंटी
जामा स्टडी हमें एक गहरी चिंता की ओर धकेलती है. हमारे बच्चे, जो देश का भविष्य हैं, अगर बचपन से ही इतनी गंभीर बीमारियों से जूझेंगे, तो हम कैसे एक स्वस्थ और मजबूत पीढ़ी की उम्मीद कर सकते हैं? इस स्थिति को बदलने के लिए हमें तुरंत कदम उठाने होंगे.

बच्चों में शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाना: उन्हें खेलकूद के लिए प्रेरित करना और खेलने के लिए सुरक्षित जगहें उपलब्ध कराना.
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता: स्कूलों और घरों में मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करना और ज़रूरत पड़ने पर मदद लेना सिखाना.
संतुलित आहार: बच्चों को पौष्टिक भोजन खाने की आदत डालना.
प्रदूषण कम करना: पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए सामूहिक प्रयास करना.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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