लुधियाना | ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं, बल्कि न्यूरो-डेवलपमेंटल स्थिति है जिसमें दवाइयों से नहीं, थेरेपी और पेरेंटल इन्वॉल्वमेंट से सुधार संभव है। यह संदेश जगराओं में आयोजित ऑटिज्म अवेयरनेस और स्क्रीनिंग कैंप में दिया गया। केयर फॉर ऑटिज़्म, लुधियाना और चक्रवर्ती चिल्ड्रन हॉस्पिटल के संयुक्त प्रयास से लगे इस फ्री कैंप का उद्देश्य पेरेंट्स को जागरूक करना और मिथकों को तोड़ना था। ऑपरेशनल हेड डॉ. अतुल मदान ने कहा कि पेरेंट्स ही बच्चे के असली थेरेपिस्ट होते हैं। प्रोफेशनल्स केवल मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। शोध बताते हैं कि 3 से 5 साल की उम्र में थेरेपी शुरू करने से बोलचाल, व्यवहार और सामाजिक कौशल में बड़ा सुधार आता है। पेरेंट्स की सक्रिय भागीदारी से कई बच्चे ऑटिज्म के डायग्नोसिस क्राइटेरिया से बाहर भी आ सकते हैं। कैंप में विशेषज्ञों ने पेरेंट्स को बताया कि अगर बच्चा नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया नहीं देता, आंखों में आंखें नहीं डालता, बार-बार हाथ फड़फड़ाता या सामाजिक खेलों में रुचि नहीं लेता, तो यह संकेत ऑटिज्म की ओर इशारा कर सकते हैं। विशेषज्ञों की टीम में शीनू कोचर, मनगुरजोत कौर और मोहम्मद मोइन ने पेरेंट्स से संवाद किया। डॉ. अमित चक्रवर्ती ने कहा कि सही समय पर मार्गदर्शन जरूरी है। डॉ. दिलप्रीत कौर ने परिवारों को सही निर्णय लेने की सलाह दी।
ऑटिज्म की थेरेपी में पेरेंट्स ही असली थेरेपिस्ट: डॉ. अतुल मदान
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