भारतीय वायुसेना (IAF) ने अपनी हवाई युद्ध क्षमता को मजबूत करने के लिए कम से कम तीन स्क्वाड्रन यानी कुल 60 पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान खरीदने की सिफारिश की है. यह जानकारी Indian Defence Research Wing (idrw.org) ने वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से दी है. यह कदम चीन-पाकिस्तान के संयुक्त खतरे को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है.
अमेरिका और रूस दोनों ने दिए प्रस्ताव
अमेरिका ने Lockheed Martin F-35 Lightning II, जबकि रूस ने Sukhoi Su-57 Felon विमान भारत को ऑफर किए हैं. ये दोनों फिफ्थ जेनरेशन फाइटर जेट्स हैं और आधुनिक युद्ध तकनीकों से लैस हैं. हालांकि, अभी तक रक्षा मंत्रालय (MoD) ने इस सौदे पर भारतीय वायुसेना को पूरी तरह से शामिल नहीं किया है.
2026 में फैसला संभव
सूत्रों के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय इन दोनों प्रस्तावों की गहराई से जांच करेगा और 2026 तक अंतिम निर्णय लिया जा सकता है. यह निर्णय ऐसे समय में लिया जा रहा है जब भारत स्वदेशी फाइटर प्रोजेक्ट AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) पर भी तेजी से काम कर रहा है.
मौजूदा फ्लीट और स्टेल्थ गैप
फिलहाल IAF के पास Sukhoi Su-30MKI, Dassault Rafale, और HAL Tejas Mk1A जैसे 4वीं और 4.5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट हैं. लेकिन IAF के पास फिलहाल कोई स्टेल्थ (गुप्त पहचान से बच सकने वाला) फाइटर जेट नहीं है, जबकि चीन के पास पहले से ही J-20 स्टेल्थ फाइटर है और पाकिस्तान भी J-10CE फाइटर जेट और PL-15E मिसाइलों से खुद को लगातार आधुनिक बना रहा है.
अमेरिकी F-35 और रूसी Su-57 की पेशकश
अमेरिका ने Lockheed Martin F-35 Lightning II और रूस ने Sukhoi Su-57 Felon भारत को ऑफर किए हैं. लेकिन रक्षा मंत्रालय (MoD) ने अभी तक भारतीय वायुसेना को इन प्रस्तावों की बातचीत में पूरी तरह शामिल नहीं किया है. यह उम्मीद है कि इस पर अंतिम निर्णय 2026 तक लिया जा सकता है.
स्वदेशी AMCA आने तक 60 स्टेल्थ फाइटर जेट्स की मांग
भारतीय वायुसेना (IAF) ने 2035 तक स्वदेशी AMCA स्टेल्थ जेट के आने से पहले तत्काल जरूरतों को देखते हुए 60 पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट खरीदने की सिफारिश की है. यह जानकारी एक वरिष्ठ IAF अधिकारी ने दी.
क्यों जरूरी हैं ये 60 स्टेल्थ फाइटर?
IAF का मानना है कि ये विमान 2024 से 2035 के बीच की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करेंगे, जब तक कि भारत का स्वदेशी 5.5वीं पीढ़ी का फाइटर जेट AMCA सेवा में शामिल नहीं हो जाता. चीन और पाकिस्तान की लगातार बढ़ती वायु शक्ति को देखते हुए, यह एक व्यावहारिक रणनीति मानी जा रही है.
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