करनाल में किसानों ने निकाला ट्रैक्टर मार्च:मोदी-ट्रम्प का पुतला फूंका, सचिवालय पर प्रदर्शन कर राष्ट्रपति के नाम सौंपा ज्ञापन

by Carbonmedia
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करनाल जिले में किसानों ने अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरकर जोरदार प्रदर्शन किया। ट्रैक्टर मार्च निकालते हुए जिला सचिवालय पहुंचे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का पुतला फूंका। किसानों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम 11 सूत्रीय मांग पत्र सौंपते हुए कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत से बाहर किया जाए। कृषि में कॉर्पोरेट दखल खत्म हो और किसानों को उनके अधिकार मिले। प्रदर्शन के दौरान किसान नेता सरकार की नीतियों पर जमकर बरसे और कहा कि नई आर्थिक और कृषि नीतियां किसान विरोधी हैं। नई नीतियां कॉर्पोरेट खेती को बढ़ावा देंगी भाकियू प्रदेश अध्यक्ष रतनमान व अन्य किसानों ने कहा कि CETA और अमेरिका के साथ होने वाले FTA का विरोध किया जाए। उनके मुताबिक CETA से UK से प्रोसेस्ड फूड, डेयरी, सब्जियां और फल का आयात बढ़ा है, जिससे किसानों की आय और छोटे कृषि व्यवसाय को नुकसान हो रहा है। अमेरिका के साथ समझौते के बाद GM खाद्य पदार्थ, अनाज, सोया, मक्का, कपास का भारी आयात और MNCs का बेकाबू प्रवेश बढ़ेगा। अमेरिका द्वारा भारत पर थोपे गए 25% टैरिफ को किसानों ने भारत की संप्रभुता पर हमला बताया और इसका कड़ा विरोध करने की मांग की। APMC मंडियों पर निजी कब्जा किसानों ने NPFAM और NCP नीतियों को भी किसान विरोधी बताया। APMC मंडियों और सरकारी मार्केट यार्डों का निजी पूंजी के साथ PPP मोड में आधुनिकीकरण करने से किसान कॉर्पोरेट कंपनियों के हाथों बंधक बन जाएंगे। वहीं, ग्राम पंचायत स्तर पर बनाए जाने वाले FPOs मुनाफाखोरी पर आधारित होंगे, जिससे किसानों को उचित MSP या मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलेगी। इन नीतियों से फसल चक्र बदलकर केवल व्यापारिक फसलें उगाने का दबाव बनेगा और सरकारी खरीद, PDS और खाद्य सुरक्षा कमजोर होगी। माइक्रो फाइनेंस कंपनियों पर सख्ती की मांग किसानों ने C2+50 फॉर्मूले के आधार पर सभी फसलों के लिए MSP की गारंटी और सरकारी खरीद सुनिश्चित करने की मांग रखी। साथ ही समग्र कर्ज माफी की मांग करते हुए कहा कि माइक्रो फाइनेंस कंपनियां सूदखोर जमींदारों की तरह काम कर रही हैं। एजेंट गरीब, दलित, आदिवासी परिवारों का उत्पीड़न कर रहे हैं, महिलाओं-बच्चियों पर अत्याचार और अपहरण की घटनाएं बढ़ रही हैं। किसानों ने मांग की कि गांवों में उत्पादक सहकारी समितियां बनाई जाएं जो बिना ब्याज कर्ज दें और MFI ऋण प्रणाली को 4 वार्षिक ब्याज पर नियंत्रित किया जाए। भूमि अधिग्रहण और पेंशन को लेकर आवाज बुलंद पंजाब सरकार की लैंड पुलिंग नीति को इनकार करते हुए किसानों ने 2013 के LARR अधिनियम को सख्ती से लागू करने की मांग की। साथ ही सभी सरकारी पेंशन 10 हजार प्रति माह करने और इसे मौलिक अधिकार बनाने की मांग की। किसानों ने कहा कि शहरीकरण के नाम पर किसानों की जमीन छीनकर कॉर्पोरेट को सौंपने का काम बंद होना चाहिए। वनाधिकार और शिक्षा नीतियों का भी विरोध किसानों ने 10 साल पुराने डीजल ट्रैक्टरों और वाहनों पर बैन लगाने की योजना को अव्यावहारिक और किसान विरोधी बताया। विश्व आदिवासी दिवस पर उन्होंने वन अधिकार अधिनियम 2006 को सही रूप में लागू करने, आदिवासियों का विस्थापन रोकने, जंगलों की कटाई और कॉर्पोरेट खनन बंद करने की मांग की। शिक्षा के मुद्दे पर किसानों ने उत्तर प्रदेश सरकार की 5 हजार प्राथमिक स्कूल बंद करने की योजना को गरीब और ग्रामीण बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया। उन्होंने कहा कि कम उपस्थिति की असली वजह शिक्षा की बदहाल व्यवस्था, शिक्षकों की कमी और अंग्रेजी मीडियम का अभाव है। झूठे मुकदमे वापस लेने की अपील मांग पत्र में पुलिस और प्रशासन के संरक्षण में हो रही साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने, अल्पसंख्यकों और दलितों पर हमले बंद करने, बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक और सभी झूठे मुकदमे वापस लेने की अपील की गई। मछुआरों से मुफ्त मछली पकड़ने का अधिकार छीने जाने और मछली पकड़ने के ठेके देने की नीति का भी विरोध किया गया। किसानों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों पर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ किसानों की नहीं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की है।

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