करनाल में स्टील कुर्सी घोटाले में नया मोड़:ठेकेदार का राजेश ढांगी पर आरोप, सरकारी जॉब पर रहते उठा टेंडर, गलत वजन की कुर्सियां लगाईं

by Carbonmedia
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करनाल के असंध में नगरपालिका द्वारा स्टील की कुर्सियों की खरीद में हुए बड़े घोटाले का मामला अब तूल पकड़ चुका है। इस घोटाले में लगातार नए-नए खुलासे हो रहे हैं। अब सामने आया है कि जिस कंपनी को टेंडर अलॉट किया गया था, उसने खुद काम न करके किसी और व्यक्ति को ठेका सौंप दिया, जो न केवल लाइसेंसधारी नहीं है, बल्कि सरकारी कर्मचारी भी है। वहीं, कांग्रेस ने इस पूरे प्रकरण को नगरपालिका और ठेकेदार की मिलीभगत बताते हुए जमकर निशाना साधा है। बिना लाइसेंस वाले सरकारी मुलाजिम ने किया काम
जांच में सामने आया है कि टेंडर जिस कंपनी ‘लक्ष्य को-ऑपरेटिव सोसाइटी’ को दिया गया था, उस नाम पर तो कागजी प्रक्रिया हुई, लेकिन असली काम राजेश ढांगी नामक शख्स ने किया। वह पहले भी ऐसे टेंडर लेता रहा है, जबकि वह खुद सरकारी नौकरी में है। उसने किसी अन्य का लाइसेंस इस्तेमाल कर ठेका लिया और काम पूरा किया। वहीं, ठेकेदार सुनील गर्ग, जिनके नाम पर यह टेंडर अलॉट हुआ था, ने खुद माना कि उन्होंने यह टेंडर राजेश ढांगी को दे दिया था। एडवोकेट सोनिया बोहत ने उठाए सवाल
एडवोकेट सोनिया बोहत ने इस घोटाले पर तीखा बयान देते हुए कहा कि यह मामला सिर्फ वित्तीय गड़बड़ी का नहीं, बल्कि सत्ता और भ्रष्टाचार के गठजोड़ का भी है। उन्होंने कहा कि जब किसी स्थान पर सार्वजनिक संपत्ति लग जाती है, तो वह जनता की होती है, लेकिन यहां 15 दिन पहले लगाई गई कुर्सियों को रातोंरात उखाड़कर निजी प्लॉटों में डलवा दिया गया। बोहत ने आरोप लगाया कि राजेश ढांगी हमेशा से टेंडर लेता आ रहा है, कभी कटारिया के राइट हैंड के रूप में तो कभी खुद ठेकेदार बनकर। वह बिना नौकरी पर जाए, दूसरों के लाइसेंस पर काम करता है। परिवार के नाम पर भी लाइसेंस, अमित ढांगी भी संदेह के घेरे में
एडवोकेट बोहत ने बताया कि राजेश ढांगी ने पूरे परिवार के नाम पर लाइसेंस बनवा रखे हैं। उसका सहयोगी अमित ढांगी एचकेआरएन के तहत नियुक्त है, लेकिन काम जेई वाला करता है। यह भी घोर अनियमितता है। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि अगर कुर्सियों का टेंडर पहले से अलॉट था, तो चेयरमैन की यह जिम्मेदारी क्यों नहीं बनती कि वह गुणवत्ता और वजन की जांच करे? सुनील गर्ग ने किया कबूलनामा, कहा- मुझे कोई फायदा नहीं मिला
ठेकेदार सुनील गर्ग ने खुलासा किया कि टेंडर दो महीने पहले उनके नाम पर अलॉट हुआ था, लेकिन उन्होंने काम राजेश ढांगी को दिया। कुर्सियों के वजन पर सवाल उठते ही नगर पालिका से नोटिस मिला और उन्हें कहा गया कि कुर्सियां हटा ली जाएं, क्योंकि वजन कम है। उन्होंने बताया कि उन्होंने खुद राजेश ढांगी को फोन करके कुर्सियां हटाने को कहा और ढांगी ने कुर्सियां उठवा लीं। गर्ग ने यह भी कहा कि उन्होंने कभी नहीं कहा था कि वजन कम कर देना, बल्कि पेमेंट तो वेट के हिसाब से ही होनी थी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कुर्सियों पर वजन अमित ढांगी ने खुद लिखा था। एफआईआर की मांग, भ्रष्टाचारियों को सजा देने की उठी आवाज
इस मामले को लेकर जनता में आक्रोश है। सोनिया बोहत ने मांग की कि या तो ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए या फिर नगरपालिका जिम्मेदारी ले और कुर्सियों के घटिया निर्माण पर कार्रवाई करे। उन्होंने यह भी कहा कि चोरी अब सार्वजनिक हो चुकी है, पेमेंट भले ही नहीं हुई हो, लेकिन उसका रास्ता तैयार था। क्या था घोटाले का पूरा गणित?
नगरपालिका ने शहर में 214 स्टील कुर्सियों के लिए टेंडर जारी किया था। हर कुर्सी का वजन 50 किलो और कीमत 396 रुपए प्रति किलो तय की गई थी, जिससे एक कुर्सी की कीमत करीब 19,800 रुपए बनती है। इस हिसाब से कुल टेंडर राशि 42 लाख 37 हजार 200 रुपए थी। लेकिन जांच में पता चला कि कुर्सियों का वास्तविक वजन 30 से 35 किलो ही था। यानी हर कुर्सी में 15 से 20 किलो स्टील कम लगाया गया। इसके अलावा, 396 रुपए प्रति किलो की दर से दिखाई गई स्टील का बाजार मूल्य मात्र 225 रुपए किलो था। न ग्रेड का प्रमाण, न गुणवत्ता की पुष्टि
एडवोकेट के मुताबिक, टेंडर में ग्रेड 304 स्टील का उल्लेख किया गया था, लेकिन मौके पर न तो कोई ग्रेड अंकित था और न ही गुणवत्ता का कोई प्रमाण मौजूद था। इससे स्पष्ट हुआ कि न सिर्फ स्टील कम लगाया गया, बल्कि घटिया गुणवत्ता का भी उपयोग किया गया। इसके साथ ही कुर्सियों को शर्तों के अनुसार एक साल में लगाना था, लेकिन उन्हें 6 महीने की देरी से लगाया गया। अब जनता से अपील: भ्रष्टाचार के खिलाफ जागो
एडवोकेट सोनिया बोहत ने कहा कि अब जनता को इस प्रकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद खड़ा होना होगा। चंद लोग नगरपालिका जैसे संस्थानों को निजी संपत्ति समझकर लूट रहे हैं और आम आदमी के टैक्स के पैसे को अपनी जेब में डाल रहे हैं। ऐसे में जनता की जागरूकता ही असली जवाब है।

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