सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों और न्यायाधिकरणों में ‘टॉयलेट’ की सुविधा सुनिश्चित करने को लेकर स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी. चार महीने की समय सीमा बीत गई है, लेकिन 25 में से सिर्फ 5 हाई कोर्ट ने ही इस पर स्टेटस रिपोर्ट दी है. हाई कोर्ट ने अब 20 राज्यों के हाई कोर्ट को दो महीने का समय और दिया है.
जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि यह आखिरी मौका है. पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि अगले आठ हफ्तों में रिपोर्ट दाखिल न करने पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
शीर्ष अदालत ने 15 जनवरी के अपने फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित ‘सैनिटेशन’ तक पहुंच को मौलिक अधिकार माना गया है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी करते हुए हाई कोर्ट, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से सभी कोर्ट परिसरों और न्यायाधिकरणों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग-अलग शौचालयों की सुविधा सुनिश्चित करने को कहा था.
न्यायालय ने साथ ही चार महीने के भीतर स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी थी. बेंच ने बुधवार को कहा कि केवल झारखंड, मध्य प्रदेश, कलकत्ता, दिल्ली और पटना हाई कोर्ट ने ही निर्देशों का पालन करने के लिए की गई कार्रवाई का विवरण देते हुए हलफनामे दायर किए हैं, जबकि देश में 25 हाई कोर्ट हैं.
हलफनामा रिपोर्ट के लिए मिले आठ हफ्ते
पीठ ने कहा, ‘कई हाई कोर्ट ने अभी तक अपने हलफनामे/अनुपालन रिपोर्ट दाखिल नहीं किए हैं. हम उन्हें आठ हफ्तों के भीतर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का आखिरी मौका देते हैं. हम स्पष्ट करते हैं कि अगर वे स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने में विफल रहते हैं तो हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हों.’
कोर्ट ने 15 जनवरी के अपने फैसले में कहा था कि हाई कोर्ट यह सुनिश्चित करेंगे कि सुविधाएं स्पष्ट रूप से चिन्हित हों और न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, वादियों और न्यायालय के कर्मचारियों के लिए सुलभ हों. शीर्ष अदालत का फैसला अधिवक्ता राजीब कालिता की ओर से दायर जनहित याचिका पर आया.
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