भास्कर न्यूज | लुधियाना पंजाब और पड़ोसी राज्यों में लगातार भारी बारिश और नदियों में बढ़ते जलस्तर ने बाढ़ की स्थिति को और गंभीर बना दिया है। इस हालात का सबसे ज्यादा असर किसानों और पशुपालकों पर पड़ रहा है, क्योंकि बाढ़ न केवल चारे और भूसे की कमी पैदा करती है, बल्कि पशुओं को संक्रामक रोगों और परजीवियों का भी खतरा बढ़ा देती है। इसको देखते हुए गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी ने पशुपालकों की मदद के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. रविंदर सिंह ग्रेवाल ने कहा कि पशुओं की देखभाल इस मौसम में बेहद संवेदनशील हो जाती है और लापरवाही से उनकी जान पर बन सकती है। डॉ. ग्रेवाल ने बताया कि नमी और गंदे पानी के कारण पशुओं में मच्छर, मक्खी, किलनी और जोंक जैसे परजीवी तेजी से फैलते हैं। मच्छरों और मक्खियों से लंगड़ा बुखार का खतरा बढ़ जाता है, जबकि किलनी बेबेसियोसिस जैसे गंभीर रोग का कारण बन सकती हैं। इनसे बचने के लिए पशु शेड की दरारों और खाली जगहों को भरना चाहिए और समय-समय पर पशु चिकित्सा विशेषज्ञ की सलाह से दवाओं का छिड़काव करना जरूरी है। बाढ़ का पानी साल्मोनेला और ई. कोलाई जैसे खतरनाक जीवाणुओं से भरा होता है, जो पशुओं में दस्त और संक्रमण फैला सकते हैं इसलिए बछड़ों को पिलाने वाला पानी हमेशा उबालकर ठंडा किया जाए। वहीं, गीली जमीन पर लंबे समय तक खड़े रहने से पशुओं के खुर सड़ सकते हैं और वे लंगड़ा भी हो सकते हैं। इसे रोकने के लिए खुरों को ब्रश से साफ करने या 5 प्रतिशत फॉर्मेलिन घोल में डुबोने की सलाह दी गई है। पशुओं के खड़े होने की जगह पर सूखी घास या भूसा बिछाना भी जरूरी है। बाढ़ और नमी के कारण गलाघोंटू, थनैला और लंपी चर्म रोग का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि पशुपालक समय पर अपने पशुओं का टीकाकरण जरूर करवाएं। दूध देने वाली गाय-भैंसों के थनों को हर बार दूध पिलाने के बाद बीटाडीन और ग्लिसरीन के घोल (3:1 अनुपात) में डुबोना चाहिए, जिससे थनैला रोग का खतरा कम हो। नमी के कारण चारे और भूसे में फफूंद लगने का खतरा ज्यादा होता है, जिससे पशुओं में “फफूंद विषाक्तता” हो सकती है। इससे बचाव के लिए आहार को हमेशा सूखी जगह पर रखना चाहिए। अगर चारे की कमी हो तो भूसे को 30 लीटर पानी, 3 किलो शीरे और 1 किलो यूरिया के घोल से उपचारित करके खिलाया जा सकता है। इसके अलावा विटामिनयुक्त आहार और धातु चूर्ण पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और उन्हें स्वस्थ रखते हैं। बाढ़ का समय पशुपालकों के लिए चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन थोड़ी सी सावधानी और सही दिशा-निर्देश अपनाकर पशुओं को सुरक्षित रखा जा सकता है। वेटरनरी यूनिवर्सिटी ने स्पष्ट किया है कि किसी भी आपात स्थिति या समस्या के समाधान के लिए पशुपालक सीधे यूनिवर्सिटी के हेल्पलाइन नंबर 62832-58834 और 62832-97919 पर संपर्क कर सकते हैं।
किसी भी समस्या पर पशुपालक यूनिवर्सिटी के हेल्पलाइन नंबर 62832-58834, 62832-97919 पर संपर्क कर सकते हैं
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