कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने कहा है कि अगर भारत अमेरिका के साथ हो रही व्यापार बातचीत में कृषि पर अपने कड़े रुख को नहीं बदलेगा, तो देश 50 बिलियन डॉलर के कृषि उत्पादों के निर्यात को खोने का बड़ा खतरा उठा सकता है. उन्होंने साफ कहा कि भारत को अपने कृषि उत्पादों पर लगाए गए टैरिफ को सही करना चाहिए और केवल वैचारिक डर के पीछे नहीं भागना चाहिए.
कृषि क्षेत्र का सही आंकलन जरूरी- गुलाटीइंडिया टुडे से बातचीत में गुलाटी ने बताया कि भारत अब तक अमेरिका से सिर्फ 2 बिलियन डॉलर के कृषि उत्पाद आयात करता है, जबकि हम कुल 37 बिलियन डॉलर के कृषि उत्पाद आयात करते हैं. वहीं, हम करीब 5.9 बिलियन डॉलर का कृषि निर्यात भी करते हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर हम बातचीत में सख्ती बरतते रहे, तो हम 50 बिलियन डॉलर के बड़े निर्यात का नुकसान कर सकते हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि भारत पहले से ही बहुत सारी चीजें आयात करता है. उदाहरण के तौर पर, जो तेल हम खाते हैं उसका करीब 55-60 प्रतिशत हिस्सा हम बाहर से लाते हैं. इसलिए यह कहना कि हम अब किसी चीज का आयात नहीं करेंगे, सही नहीं है.
टैरिफ में बदलाव की जरूरतगुलाटी ने कहा कि भारत के कृषि उत्पादों पर लगे शुल्क बहुत ज्यादा हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर खाद्य तेल पर सिर्फ 10% और कपास पर कोई कस्टम ड्यूटी नहीं लगती, तो फिर मक्का पर 45%, सोयाबीन पर 50-60% और स्किम्ड मिल्क पाउडर पर इतना अधिक शुल्क क्यों है? उन्होंने बताया कि भारत ने अपने किसानों की बहुत अधिक सुरक्षा की है, जबकि वास्तव में लगभग 80% कृषि उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं.
जीएम फसलों पर विरोधाभासी नीतिअशोक गुलाटी ने कहा कि भारत की नीति जीएम (Genetically Modified) फसलों को लेकर विरोधाभासी है. देश में करीब 95% कपास जीएम है और इसके बीज पोल्ट्री व पशुओं को खिलाए जाते हैं. फिर भी भारत मक्का के जीएम उत्पाद को स्वीकार नहीं करता. उन्होंने कहा कि यह विज्ञान पर आधारित नहीं, बल्कि सिर्फ वैचारिक सोच है.
संतुलित उपाय अपनाने की सलाहगुलाटी ने सुझाव दिया कि सरकार टैरिफ-रेट कोटा जैसे संतुलित उपाय अपनाए. उदाहरण के लिए, भारत में अगर मक्का का उत्पादन 42 मिलियन टन है, तो 2 मिलियन टन तक का आयात सीमित तरीके से किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि कभी-कभी हम आयात करेंगे, कभी निर्यात. वर्तमान में, हमारे उत्पादों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के करीब हैं, इसलिए कोई नुकसान नहीं होना चाहिए.
जोखिम और समझौते की जरूरतगुलाटी ने चेताया कि अगर भारत जिद पर अड़ा रहेगा, तो अमेरिका जवाबी कदम उठा सकता है. भारत का सबसे बड़ा कृषि निर्यात अमेरिका को झींगा है, जिसकी कीमत अरबों डॉलर में है. अगर अमेरिका इस पर 50% कस्टम ड्यूटी लगा देता है, तो ये निर्यात ठप्प हो जाएगा. ऐसे नुकसान और राजनीतिक असर को संभालने के लिए भारत को तैयार रहना होगा. अशोक गुलाटी ने कहा कि व्यापार में हमेशा देना और लेना होता है. अगर अमेरिका चाहता है कि उसकी कृषि आत्मनिर्भर बने, तो पहले उसे खुद भी आयात बंद करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘भारत को भी अपने रुख में संतुलन बनाना चाहिए और एक व्यावहारिक दृष्टिकोण से बातचीत करनी चाहिए.’
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