केमिकल नहीं, जड़ी-बूटियों पर भरोसा! 92% लोगों की पहली पसंद आयुर्वेदिक दवाइयां

by Carbonmedia
()

Ayurvedic Medicine in India: भारत के एफएमसीजी बाजार में आयुर्वेद की स्थिति अभी भी सीमित है. हालांकि कन्तार की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर भारतीय घरों में आयुर्वेदिक उत्पादों की खरीदारी होती है, लेकिन यह श्रेणी कुल एफएमसीजी वॉल्यूम में मात्र 1.1 प्रतिशत का योगदान देती है. 2024-25 में जहां 92 प्रतिशत भारतीय घरों ने आयुर्वेदिक उत्पाद खरीदे, वहीं यह आंकड़ा पांच साल पहले 89 प्रतिशत था. इस दौरान इस श्रेणी का योगदान 0.8 प्रतिशत से बढ़कर 1.1 प्रतिशत हुआ, जो दर्शाता है कि लोगों में रुचि तो बढ़ी है, लेकिन बाजार में हिस्सेदारी अभी भी सीमित नजर आ रही है. 
बता दें, पिछले साल आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री में गिरावट देखी गई. इसका एक प्रमुख कारण पतंजलि की कमजोर प्रदर्शन रहा था. हालांकि, डाबर, हिमालयाल जैसे ब्रांड्स की बिक्री में बढ़ोतरी देखने को मिली है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि विश्वसनीय ब्रांड्स अब भी उपभोक्ताओं की पसंद बने हुए हैं.
ये भी पढ़े- महिलाओं में क्यों हो जाती है आयरन की कमी? जान लीजिए वजह
उपभोक्ताओं  को लुभाने का काम 
बाजार का आकार और हिस्सेदारी की बात करें तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा आयुर्वेदिक उत्पाद बाजार है और यह लगातार विकास कर रहा है. इस क्षेत्र में पारंपरिक आयुर्वेदिक कंपनियों के साथ-साथ बड़े एफएमसीजी ब्रांड्स और नए डिजिटल स्टार्टअप्स के प्रवेश ने प्रतिस्पर्धा बढ़ता हुआ देखा गया है. यानी हर खिलाड़ी अपने-अपने लक्ष्य उपभोक्ता वर्ग को ध्यान में रखकर उत्पाद पेश कर रहा है. कोई किफायती विकल्प ला रहा है, तो कोई प्रीमियम उत्पादों के ज़रिए शहरी उपभोक्ताओं को लुभा रहा है. आज का उपभोक्ता प्राकृतिक, हर्बल और केमिकल-फ्री उत्पादों की ओर तेजी से आकर्षित हो रहा है. लोग अब लेबल पढ़ते हैं और ऐसी कंपनियों को चुनते हैं जो पारदर्शिता, शुद्धता और स्थिरता बनाएं रखती हैं. 
विज्ञान को आयुर्वेद के साथ जोड़ा गया 
एक नई दिशा यह भी है कि आधुनिक विज्ञान को आयुर्वेद के साथ जोड़ा जा रहा है. ताकि पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक डेटा के जरिए प्रमाणित किया जा सके. त्वचा देखभाल के लिए  अश्वगंधा जैसे पारंपरिक तत्वों को डर्मेटोलॉजिकली टेस्टेड फॉर्मूलों के साथ मिलाकर प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे युवा उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ रहा है.
डिजिटल परिवर्तन का असर दिखा 
डिजिटल परिवर्तन ने भी इस क्षेत्र में नई ऊर्जा भरी है. ई-कॉमर्स और डायरेक्ट-टू-कंज़्यूमर मॉडल्स के जरिए अब आयुर्वेदिक उत्पाद देश के कोने-कोने तक पहुंच पा रहे हैं. सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और हेल्थ-बेस्ड कंटेंट मार्केटिंग ने आयुर्वेदिक ब्रांड्स को बढ़ाने का काम किया है. वहीं सरकार की ओर से आयुष मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों जैसे स्टैंडर्डाइजेशन, गुणवत्ता प्रमाणन और वैश्विक स्तर पर प्रचार ने इस क्षेत्र को और अधिक मान्यता और समर्थन प्रदान किया है. 
ये भी पढ़ें: फैटी लिवर… एक साइलेंट किलर, सिरोसिस से लेकर कैंसर तक का खतरा; जानें कब हो जाएं सतर्क
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating / 5. Vote count:

No votes so far! Be the first to rate this post.

Related Articles

Leave a Comment