The Impact of Climate on Sleep: एक रिसर्च के मुताबिक, हमारा सोने का तरीका हफ्ते के दिन, मौसम और जगह के हिसाब से काफी बदलता है. दक्षिण ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह रिसर्च की. इसमें 1 लाख 16 हजार से ज्यादा वयस्कों और 73 मिलियन से ज्यादा सोने की रातों का डेटा लिया गया. सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, टीम ने 3.5 साल में नींद की अवधि और समय को निष्पक्ष रूप से ट्रैक करने के लिए एक अंडर-मैट्रेस डिवाइस का उपयोग किया. यानी शोधकर्ताओं ने तीन साल से ज्यादा समय तक एक खास उपकरण से उनके सोने का समय और अवधि को नापा.
इंसानों की नींद में मौसम का बड़ा असर
रिसर्च में पाया गया कि हमारी नींद केवल हमारी आदतों से नहीं, बल्कि दिन की रोशनी, तापमान और हफ्ते भर की दिनचर्या जैसे माहौल के कारण भी बदलती है. फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी की नींद संबंधी मामलों की विशेषज्ञ हन्ना स्कॉट ने बताया कि इंसानों की नींद में मौसम का भी बड़ा असर पड़ता है. लोगों का सोने का समय उनकी उम्र, इलाके और भौगोलिक स्थिति से जुड़ा होता है.
उदाहरण के लिए, उत्तरी गोलार्ध (जैसे यूरोप, अमेरिका) में लोग सर्दियों में 15–20 मिनट ज्यादा सोते हैं, जबकि दक्षिणी गोलार्ध (जैसे ऑस्ट्रेलिया) में लोग गर्मियों में कम सोते हैं.
स्लीप रिसर्च में क्या निकला?
स्कॉट ने कहा कि जो लोग भूमध्य रेखा से दूर रहते हैं, उनकी नींद में मौसम के हिसाब से ज्यादा बदलाव देखने को मिलता है. इसके अलावा, लोग वीकेंड (शनिवार-रविवार) को देर से सोते हैं और ज्यादा देर तक सोकर अपनी नींद पूरी करने की कोशिश करते हैं, खासकर मध्यम आयु वर्ग के वो लोग जो काम और परिवार के बीच संतुलन बनाते हैं.
स्लीप में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, ये अनियमित पैटर्न तेजी से नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों से जुड़े हुए हैं. यानी ऐसी अनियमित नींद का सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है. रिसर्च में पाया गया कि नींद में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है. 2020 से 2023 तक हर साल लोगों की औसत नींद में करीब 2.5 मिनट की कमी आई है और संभवत इसका कारण कोविड-19 महामारी का असर है.
सेहत के लिए खतरा बन सकती है ज्यादा नींद
फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के डैनी एकर्ट ने कहा कि अनियमित नींद सिर्फ थकान ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी खतरा बन सकती है. इसलिए हमें यह समझना जरूरी है कि हमारा माहौल और दिनचर्या हमारी नींद को कैसे प्रभावित करते हैं, ताकि उसे बेहतर किया जा सके.
हालांकि यह रिसर्च उन लोगों पर की गई जो तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, फिर भी यह बताता है कि बेहतर नींद के लिए मौसम और समय को भी ध्यान में रखना जरूरी है.
केवल आदतों से नहीं, बल्कि वातावरण से भी प्रभावित होती है नींद, ‘स्लीप रिसर्च’ से बड़े खुलासे
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