केवल लंदन में होती थी सिविल सर्विस परीक्षा:18 साल में सिर्फ 4 भारतीय पास कर पाए; आज 10 भर्ती परीक्षाएं कराता है UPSC

by Carbonmedia
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साल 1854 की बात है भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन लागू था। सत्ता के सभी प्रशासनिक पदों पर कंपनी के चुने हुए लोग नियुक्त होते थे। ऐसे में गवर्नर जनरल डलहौजी और लॉर्ड मैकॉले की एक कमेटी ने सिफारिश पेश की कि प्रशासनिक भर्तियां मेरिट बेस्ड परीक्षा के आधार पर होनी चाहिए। इस आधार पर साल 1855 में इंपीरियल सिविल सर्विस यानी ICS भर्ती परीक्षा शुरू हुई। 1855 में पहली बार ICS परीक्षा लंदन में आयोजित की गई। हालांकि, इसमें एक भी भारतीय शामिल नहीं हुआ। अगले 8 साल यानी 1962 तक कोई भारतीय इस परीक्षा को क्लियर नहीं कर पाया। इतिहासकार इसकी 4 वजहें बताते हैं- इसके बावजूद साल 1863 में सत्येंद्र नाथ टैगोर ICS परीक्षा पास करने वाले पहले भारतीय बने। जब वो परीक्षा क्लियर करके वापस लौटे तो कलकत्ता में उनका भव्य स्वागत हुआ। उन्हें बॉम्बे प्रेसीडेंसी कैडर मिला और 30 से ज्यादा सालों तक सर्विस के बाद वे रिटायर्ड हुए। प्रोबेशन के दौरान कैंडिडेट्स ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के कॉलेजों या ट्रिनिटी कॉलेज, डबलिन में पढ़ाई करते थे। वहां वे क्रिमिनल लॉ और लॉ ऑफ एविडेंस समेत भारत के कानूनों और संस्थानों की पढ़ाई करते थे। साथ ही भारतीय इतिहास पढ़ते और उस प्रांत की भाषा सीखते थे, जहां उनकी नियुक्ति होती थी। ब्रिटिश क्राउन ने यूनिफॉर्म तय किया 1857 के गदर के बाद भारत का शासन कंपनी के हाथों से ब्रिटिश क्राउन ने अपने हाथों में ले लिया था। इसी समय रानी विक्टोरिया ने सुझाव दिया कि भारत में सिविल सेवकों के लिए एक आधिकारिक यूनिफॉर्म होनी चाहिए। हालांकि, काउंसिल ऑफ इंडिया ने इसे अनावश्यक खर्च बताया। सिविल सर्वेंट्स की शुरुआती यूनिफॉर्म में सोने की कढ़ाई के साथ नीला कोट, काला मखमली अस्तर, कॉलर और कफ, सोने और दो इंच चौड़ी लेस के साथ नीले कपड़े की पतलून, काले रेशमी कॉकेड और शुतुरमुर्ग के पंखों के साथ बीवर कॉक्ड हैट, और एक तलवार शामिल किए गए। ब्रिटिश प्रांत का गवर्नर पद इंपीरियल सिविल सर्विसेस (ICS) के किसी अधिकारी के लिए सबसे ऊंचा पद था। टॉप पर मौजूद गवर्नरों को 6,000 पाउंड सलाना के साथ-साथ भत्ते मिलते थे। असिस्टेंट कमिश्नर की शुरुआती सैलरी 300 पाउंड सलाना होती थी। सभी ICS अधिकारी 1,000 पाउंड सलाना के बराबर पेंशन पर रिटायर्ड होते थे। अधिकारियों की विधवाओं को भी 300 पाउंड सलाना मिलने का हक था। इसी कारण एक कहावत प्रचलित हुई कि ICS से शादी की कीमत ‘जिंदा या मुर्दा, सलाना 300 पाउंड’ होती है। 60 सालों में 63 इंडियन ही ICS पास किया लंबे समय तक अधिकांशतः ब्रिटिशर्स ही ICS में सिलेक्ट होते रहे। 1871 तक, केवल 4 भारतीय ही सिविल सर्विस में शामिल हो पाए। 60 साल बाद यानी 1915 तक भी ICS में केवल 63 भारतीय ही शामिल हुए थे। ऐसे में भारत में ICS की चयन प्रक्रिया में बदलाव की मांगे होने लगीं। दादाभाई नौरोजी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे नेता मांग करने लगे कि परीक्षा भारत में भी हो। आखिरकार, साल 1919 में तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ द स्टेट फॉर इंडिया ‘एडविन मॉन्टेग्यू’ और वायसराय ‘लॉर्ड चेम्सफोर्ड’ ने सिविल सेवाओं को लेकर सुधार पेश किए। इंपीरियल सिविल सर्विसेस को दो हिस्सों में बांटा गया मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड के दिए गए सुधारों के चलते गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1919 के पारित हुआ। ये 1921 में लागू हुआ इंपीरियल सर्विसेस को दो हिस्सों में बांट दिया गया- इसके बाद एग्जाम का एक वर्जन भारत में भी शुरू किया गया। 1922 में पहली बार ICS का एग्जाम लखनऊ, इलाहाबाद (अब प्रयागराज) और दिल्ली में एग्जाम हुआ। ‘ली कमीशन’ ने पब्लिक सर्विस कमीशन बनाने की सिफारिश की साल 1923 में भारत में आजादी की मांग बढ़ने लगी थी। ऐसे में ब्रिटिश सरकार ने ICS पर एक रॉयल कमीशन नियुक्त किया। इस कमीशन का नेतृत्व ‘लॉर्ड ली’ ने किया और इसे ‘ली कमीशन’ के नाम से जाना गया। 1924 में ‘ली कमीशन’ ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें लोक सेवा आयोग यानी पब्लिक सर्विस कमीशन की स्थापना की सिफारिश की गई। सिफारिशों के चलते 1 अक्टूबर, 1926 को सर रॉस बार्कर की अध्यक्षता में पहले पब्लिक सर्विस कमीशन यानी लोक सेवा आयोग की स्थापना हुई। शुरुआत में इस आयोग को केवल सीमित सलाहकारी काम सौंपे गए थे। इससे स्वतंत्रता आंदोलन के नेता असंतुष्ट थे। इसमें उन्हें भारतीय शासन में भारतीयों की भागीदारी बढ़ाने का पर्याप्त प्रयास नहीं नजर आया। 1935 में फेडरल पब्लिक सर्विस कमीशन स्थापना हुई 1930 के साइमन कमीशन और 1930 से 1932 के बीच हुए 3 गोलमेज सम्मेलनों की सिफारिशों के चलते गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 लाया गया। इस एक्ट ने सिविल सर्विसेस में अपॉइंटमेंट, ट्रांसफर और डिसिप्लिनरी मैटर्स के लिए इंडिपेंडेंट बॉडी की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि भर्ती प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी हो। इसके लिए देश में इसी साल फेडरल पब्लिक सर्विस कमीशन और प्रोविंशियल पब्लिक सर्विस कमीशन की स्थापना की गई। आजादी के पहले ICS का भी बंटवारा हुआ हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के बंटवारे और ब्रिटिशर्स के जाने के समय, इंपीरियल सिविल सर्विस (ICS) को भारत और पाकिस्तान डोमिनियनों के बीच विभाजित कर दिया गया। भारत को मिलने वाला हिस्सा इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (IAS), जबकि पाकिस्तान को मिलने वाला हिस्सा सिविल सर्विस ऑफ पाकिस्तान (CSP) कहलाया। FPSC को UPSC के रूप में पुनर्गठित किया गया 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। इसके साथ ही फेडरल पब्लिक सर्विस कमीशन (FPSC) को औपचारिक रूप से यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन यानी संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के रूप में पुनर्गठित किया गया। संविधान के आर्टिकल 315 के तहत UPSC की स्थापना हुई। इसे एक स्वतंत्र निकाय के रूप में स्थापित किया गया, जिसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। UPSC को ऑल इंडिया सर्विसेस (IAS, IPS, IFS) और अन्य सेंट्रल सर्विसेस के लिए भर्ती का जिम्मा सौंपा गया, जो स्वतंत्र भारत के प्रशासन का आधार बना। भारत के राष्ट्रपति द्वारा होती है सदस्यों की नियुक्ति UPSC के बोर्ड में एक चेयरमैन यानी अध्यक्ष और अधिकतम 10 अन्य सदस्य शामिल होते हैं। इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। UPSC के अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के संविधान के आर्टिकल 316(1) के तहत की जाती है। अधिकांश UPSC अध्यक्ष 10 साल एक्सपीरियंस्ड इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेस (IAS), इंडियन पुलिस सर्विसेस (IPS) या अन्य दूसरे ऑल इंडिया सर्विसेस के रिटायर्ड ऑफिसर होते हैं। UPSC के मौजूदा अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार, 1985 बैच के IAS ऑफिसर हैं और वे डिफेंस सेक्रेटरी रह चुके हैं। ये खबर भी पढ़ें… जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी:दिल्ली से BCom, एमपी से LLB की; 33 साल से कानूनी पेशे में; जानें पूरी प्रोफाइल कैश कांड मामले में लोकसभा में मंगलवार, 12 अगस्त को जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी मिली। स्पीकर ओम बिरला ने कहा, ‘मुझे रविशंकर प्रसाद और विपक्ष के नेता समेत कुल 146 सदस्यों के हस्ताक्षर से प्रस्ताव मिला है।’ दरअसल, 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहते हुए जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कथित तौर पर बड़ी मात्रा में कैश मिला था। मामले की जांच के लिए 3 जजों की कमेटी ने आरोपों को सही पाया और उन्हें दोषी ठहराया। इसके चलते 8 मई को CJI ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को लेटर लिखकर महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश की थी। पढ़ें पूरी खबर…

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