भास्कर न्यूज| लुधियाना साहनेवाल स्थित प्राचीन शिवाला मंदिर में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा आयोजित पांच दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिन राम के वनगमन प्रसंग का मार्मिक वर्णन किया गया। दिव्य गुरु आशुतोष महाराज की शिष्या प्रज्ञाचक्षु साध्वी शची भारती ने इस प्रसंग को भावपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि जब अयोध्या में राम के राज्याभिषेक की तैयारियां हो रही थीं, तभी मंथरा की कुटिलता ने पूरे राजमहल का वातावरण बदल दिया। मंथरा ने रानी कैकई को भड़काया और राजा दशरथ से दो वरदान मांगने को कहा-भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए 14 वर्षों का वनवास। साध्वी ने कहा कि श्रीराम ने बिना विरोध किए वनगमन स्वीकार कर अपने पिता की प्रतिज्ञा और मर्यादा की रक्षा की। यह प्रसंग उनके धैर्य, समर्पण और आदर्श पुत्र के रूप को दर्शाता है। उन्होंने मंथरा की तुलना जलते कोयले से की जो जलता है तो जलाता है और ठंडा होता है तो काला करता है। कुसंगति का यह प्रभाव आज भी समाज में देखा जा सकता है। उन्होंने सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि जैसे कुसंग बर्बादी का कारण बनता है, वैसे ही सत्संग जीवन को दिशा देता है और ईश्वर से जोड़ता है।
कैकई ने राजा दशरथ से 2 वरदान मांगे, भरत के लिए राजगद्दी व राम के लिए 14 साल का वनवास
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