इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस वर्मा ने अपने घर पर कैश मिलने के मामले की जांच के लिए इन हाउस कमेटी के गठन और उन्हें पद से हटाने की चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की सिफारिश को चुनौती दी है. सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता का आचरण भरोसा जगाने वाला नहीं है.
‘कमेटी बनाने का CJI को अधिकार’जस्टिस वर्मा की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के साथ जजेस इंक्वायरी एक्ट के प्रावधानों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की तरफ से जांच कमेटी बनाने की कोई व्यवस्था कानून में नहीं दी गई है. इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा, ‘इस बारे में कई पुराने फैसले हैं. उनमें चीफ जस्टिस को जज पर लगे आरोप की जांच के लिए कमेटी बनाने की शक्ति दी गई है. अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को कानून जैसा दर्जा हासिल है.’
‘रिपोर्ट खिलाफ आई तब दी चुनौती’जस्टिस दीपांकर दत्ता ने याचिकाकर्ता के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘अगर आप इन हाउस कमेटी को अवैध मानते थे, तो उसके गठन को पहले चुनौती देनी चाहिए थी. आप सारी दलील तब दे रहे हैं, जब कमेटी की रिपोर्ट आपके खिलाफ आई है. आपका आचरण भरोसेमंद नहीं लगता.’
वीडियो सार्वजनिक करने का विरोधइसके बाद सिब्बल ने जस्टिस वर्मा के घर पर जला हुआ कैश मिलने का वीडियो सार्वजनिक किए जाने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि माहौल पहले ही उनके खिलाफ बना दिया गया है. ऐसा खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने किया. उन्होंने सिर्फ इतना ही नहीं किया, कमेटी की रिपोर्ट के बाद जज को पद से हटाने की सिफारिश भी राष्ट्रपति को भेज दी.
‘चीफ जस्टिस डाकिया नहीं हैं’कोर्ट ने वीडियो सार्वजनिक किए जाने के खिलाफ दलील को विचारणीय माना, लेकिन कहा कि इस बात का अब कोई अर्थ नहीं है. याचिकाकर्ता को यह पहले कहना चाहिए था. बेंच ने चीफ जस्टिस की सिफारिश को सही ठहराते हुए कहा, ‘चीफ जस्टिस कोई डाकिया नहीं हैं जिसका काम सिर्फ चिट्ठी पहुंचाना है. उन्होंने रिपोर्ट को देखने के बाद अपनी सिफारिश लिखी. उनकी देश के लोगों के प्रति भी जवाबदेही बनती है.’
‘संसद स्वतंत्र रूप से काम करती है’सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से कहा, ‘जहां तक जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की सिफारिश का प्रश्न है, यह संसद के लिए बाध्यकारी नहीं है. संसद स्वतंत्र रूप से अपना काम करेगी. सम्मानित और जानकर न्यायविदों की नई कमेटी बनेगी. वह नए सिरे से तथ्यों को देखेगी.’
‘कहिए तो हम रिपोर्ट पढ़ें’कपिल सिब्बल ने कहा कि जस्टिस वर्मा के घर पर मिले कैश को उनका बताना गलत था. कमेटी को जांच करनी चाहिए थी कि कैश किसका है. कोर्ट ने इसका सख्त विरोध करते हुए कहा, ‘इन हाउस कमेटी का यह जिम्मा नहीं था. उसने प्राथमिक जांच की. अगर आप रिपोर्ट पर बात करना चाहते हैं तो उसमें बहुत कुछ लिखा है. हम उसे पढ़ कर सुना सकते हैं.’ इस पर सिब्बल के तेवर नर्म पड़ गए. उन्होंने जजों से रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से न पढ़ने का आग्रह किया.
क्या है मामला?इस साल 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली के घर पर आग लगी थी. उस समय वह दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे. आग बुझने के बाद पुलिस और दमकल कर्मियों को वहां बड़ी मात्रा में जला हुआ कैश दिखा. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने 22 मार्च को मामले की जांच के लिए 3 जजों की कमेटी बनाई. कमेटी ने 4 मई को अपनी रिपोर्ट दी. इसमें जस्टिस वर्मा को दुराचरण का दोषी माना गया. 8 मई को तत्कालीन चीफ जस्टिस ने रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी और कार्रवाई की सिफारिश की. इसी रिपोर्ट और सिफारिश के विरोध में जस्टिस यशवंत वर्मा ने याचिका दाखिल की है.
कैशकांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, जज के आचरण पर उठाए सवाल
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