केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शुक्रवार (18 जुलाई, 2025) को कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाना पूरी तरह से सांसदों का विषय है और सरकार इसमें कहीं भी शामिल नहीं है.
मेघवाल ने ‘पीटीआई’ को दिए एक इंटरव्यू में मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना की ओर से गठित आंतरिक समिति अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है.
संसद के पास न्यायाधीश को हटाने का अधिकार
कानून मंत्री ने कहा कि अगर जस्टिस वर्मा रिपोर्ट से सहमत नहीं हैं और सुप्रीम कोर्ट या किसी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं तो यह उनका विशेषाधिकार है. उन्होंने कहा कि संसद को सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने का अधिकार है.
मेघवाल ने कहा कि किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है. यह पूरी तरह से सांसदों का विषय है, उन्होंने कुछ प्रयास किए हैं और सरकार इसमें कहीं भी तस्वीर में नहीं है.
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया दरवाजा
इस बीच, जस्टिस वर्मा ने आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य ठहराने के अनुरोध के लिए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. समिति ने उन्हें उनके आवास पर नकदी बरामद होने के मामले में कदाचार का दोषी पाया है. वर्मा ने वर्तमान चीफ जस्टिस खन्ना की ओर से उन्हें पद से हटाने की 8 मई को की गई सिफारिश को रद्द करने का अनुरोध किया है.
हालांकि सरकार जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए 21 जुलाई से शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में एक प्रस्ताव पर जोर दे रही है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि उनकी पार्टी के सांसद भी इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करेंगे.
स्टोररूम से मिले नोटों से भरे चार से पांच अधजले बोरे
दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डी. के. उपाध्याय की 25 पृष्ठों की जांच रिपोर्ट, जो सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई है, में हिंदी में दो संक्षिप्त नोट हैं, जिनमें लिखा गया है कि 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास के स्टोररूम में लगी आग बुझने के बाद, नोटों से भरे चार से पांच अधजले बोरे मिले थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली बार देखने पर ऐसा लगा कि आग शॉर्ट-सर्किट के कारण लगी थी. उस समय दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश रहे जस्टिस वर्मा ने अपने जवाब में आरोपों की कड़ी निंदा की थी और कहा था कि उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य की ओर से कभी भी स्टोर रूम में कोई नकदी नहीं रखी गई थी.
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