Lung Cancer Diagnosis: जब भी कैंसर का नाम सामने आता है तो मन में डर और चिंता दोनों साथ में आते हैं. खासकर लंग कैंसर यानी फेफड़ों का कैंसर, जो ना केवल तेजी से बढ़ने वाला है, बल्कि शुरुआती लक्षणों में अक्सर नजरअंदाज भी कर दिया जाता है. धूम्रपान करने वालों में तो यह बीमारी आम हो गई है, लेकिन अब गैर-धूम्रपान करने वाले भी इसकी चपेट में आ रहे हैं.
ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि लंग कैंसर की पहचान कैसे होती है और किस स्टेज पर मरीज की जान बचाई जा सकती है. इस विषय पर डॉ. अरविंद कुमार ने जरूरी जानकारी दी है, जो हर किसी को जाननी चाहिए.
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लंग कैंसर की जांच कैसे होती है?
लंग कैंसर की शुरुआती पहचान करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इसके लक्षण आम सर्दी, खांसी या सांस की तकलीफ जैसे लगते हैं. लेकिन यदि ये लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिए। जांच की प्रक्रिया इस प्रकार होती है.
सीने का एक्स-रे
शुरुआती स्क्रीनिंग के लिए सबसे सामान्य तरीका। इसमें फेफड़ों की किसी असामान्य संरचना को देखा जा सकता है.
सीटी स्कैन
हाई-रेजोल्यूशन इमेजिंग तकनीक से फेफड़ों के अंदर की बारीकी से जांच की जाती है.
स्पुटम टेस्ट
खांसी के दौरान निकले बलगम की लैब में जांच कर कैंसर कोशिकाओं का पता लगाया जाता है.
बायोप्सी
यदि किसी गांठ या संदिग्ध हिस्से की पहचान होती है, तो वहां की कोशिकाएं निकाल कर जांच की जाती हैं कि वह कैंसर है या नहीं.
PET स्कैन या ब्रोंकोस्कोपी
यह एडवांस तकनीकें हैं जो कैंसर की स्टेज और फैलाव का पता लगाने में मदद करती हैं.
किस स्टेज तक बच सकती है मरीज की जान?
स्टेज 1: कैंसर सिर्फ फेफड़े के अंदर सीमित होता है. इस स्टेज पर पहचान होने पर इलाज से मरीज की जान बचने की संभावना 70–80 प्रतिशत तक होती है.
स्टेज 2: कैंसर पास के लिम्फ नोड्स तक फैलता है, लेकिन इलाज संभव है. रिकवरी रेट लगभग 50 प्रतिशत तक होता है.
स्टेज 3:कैंसर छाती के अन्य हिस्सों तक फैल चुका होता है. इलाज कठिन हो जाता है, लेकिन कभी-कभी कीमोथेरेपी और रेडिएशन से कंट्रोल किया जा सकता है.
स्टेज 4: यह अंतिम स्टेज होती है, जहां कैंसर शरीर के दूसरे अंगों तक फैल चुका होता है. इस स्टेज में इलाज से जीवन की गुणवत्ता को बेहतर किया जा सकता है, लेकिन पूर्ण रूप से ठीक होना मुश्किल होता है.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.