खेतों में 5 कनाल में बनवाया तालाब:उसमें संरक्षित बरसाती जल से करते हैं फसलों की सिंचाई, एडवांस बीजों की भी करते हैं पैदावार

by Carbonmedia
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देवीगढ़-शंभू रोड पर मरदांपुर गांव के 54 वर्षीय प्रगतिशील किसान कुलविंदर सिंह बरसों से भूजल संरक्षण और बीज अनुसंधान में उल्लेखनीय काम कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि वर्ष 2017 में फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट इनोवेटिव फार्मर अवॉर्ड, 2019 में हरियाणा स्थित डायरेक्टोरेट ऑफ वीट रिसर्च (DWR) जैसे नामी अनुसंधान संस्थानों के अलावा पंजाब सरकार ने उन्हें सम्मानित किया है। ‘ वह खेतीबाड़ी महकमे के सेमिनारों और कॉन्फ्रेंसों में जाकर दूसरे किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। वह सबके प्यारे बने हुए हैं। वह दसवीं पास हैं। उन्होंने पटियाला स्थित कृषि विभाग केंद्र रौणी और लुधियाना एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी से बाकायदा प्रशिक्षण लिया। वह संयुक्त परिवार में रहते हैं, जिस पर माता-पिता का आशीर्वाद बना रहता है। उनका गांव मरदांपुर घनौर ब्लॉक में आता है, जो भूजल के मामले में डार्क जोन में तो नहीं आता है, लेकिन भविष्य की चिताओं के मद्देनजर कुलविंदर भूजल संरक्षण पर निरंतर काम कर रहे हैं। जिले में भूनरहेड़ी व समाना ब्लॉक डार्क जोन में हैं। कुलविंदर बताते हैं कि वह लगभग 100 एकड़ की खेती करते हैं, जिसमें 22 एकड़ उनकी जमीन और बाकी ठेके पर है। कुछ साल पहले उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट पढ़ी थी कि भूजल के मामले में पटियाला जिला डार्क जोन में आ चुका है। इसमें जल संसाधन प्रकोष्ठ की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया था कि एक साल में भूजल औसतन 0.77 मीटर से 1.59 मीटर तक नीचे चला गया है। चूंकि, वह वर्ष 2006 में इंग्लैंड से भारत लौटकर खेती करना ही चाहते थे। वह खेतीबाड़ी विभाग के संपर्क में थे। भूजल के मुद्दे पर उन्होंने खेतीबाड़ी विभाग के माहिरों के साथ सलाह करने के बाद अपने खेतों में पांच कनाल में 250 फुट लंबा गुणा 130 फुट चौड़ा और 15 फुट गहरा तालाब बनवाया। तत्पश्चात, खेतों में भूमिगत पाइपलाइन बिछवाई। फिर इस तालाब में बरसाती पानी को संरक्षित करना शुरू किया। इसका इस्तेमाल खेती में किया जाता है। गेहूं की फसल की सिंचाई संरक्षित पानी से हो जाती है। धान की फसल के लिए उन्हें बहुत कम मोटर चलानी पड़ती है। उन्हें इस तालाब से तीन प्रत्यक्ष फायदे हो रहे हैं। एक, भूमि में पानी रिचार्ज हो रहा है। दो, बरसाती पानी को खेती में उपयोग किया जा रहा है। तीन, ज्यादा बरसात होने पर बाढ़ के खतरे से बचाव हो जाता है। उनके अनुसार, वह नए-नए बीजों पर भी काम कर रहे हैं। खेतीबाड़ी विभाग नए बीजों पीआर 132 आदि का ट्रायल उनके खेतों में करता है। फिर वह इन बीजों का उत्पादन सस्ते दामों पर अन्य किसानों को उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा उन्होंने गेहूं की किस्मों पीबीडब्ल्यू 826, पीबीडब्ल्यू 677, पीबीडब्ल्यू 766, पीबीडब्लयू 1 चपाती, धान की किस्म पीआर 126, बासमती की किस्म पूसा बासमती 1847, बरसीम की किस्म बीएल 10 एवं बीएल 44 और गन्ने की किस्म सीओजे 95 के बीज उगाए और अच्छी पैदावार हासिल की। उन्होंने अपने तैयार बीज न केवल पटियाला, मोहाली, रूपनगर और संगरूर में बेचे, बल्कि पड़ोसी राज्य हरियाणा के किसानों को भी उपलब्ध कराए।

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