गुरुग्राम के मानेसर के रहने वाले मनोज यादव की पत्नी मोनिका की डिलीवरी के बाद मौत के मामले में पुलिस ने डॉक्टर के खिलाफ लापरवाही की एफआईआर दर्ज की है। घटना के पांच महीने बाद सीएमओ ने पांच महीने जांच कर रिपोर्ट पुलिस को सौंपी। जिसके आधार पर पुलिस ने अब केस दर्ज किया है। मनोज कुमार ने बताया कि 5 जनवरी 2025 का दिन उनकी जिंदगी का सबसे काला दिन बन गया। नौ महीने की गर्भवती पत्नी मोनिका को सुबह के समय तेज पेट दर्द हुआ तो वे सक्षम अस्पताल सेक्टर 83 में भर्ती कराया। यह एक ऐसा दिन था, जो खुशी और नई जिंदगी की उम्मीद लेकर आया था, लेकिन अस्पताल की लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने उसके परिवार की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। प्रेगनेंसी के दाैरान देखभाल की मनोज कुमार ने अपनी शिकायत में बताया कि वह अपनी पत्नी मोनिका के साथ दूसरी बार माता-पिता बनने की खुशी में थे। मोनिका की गर्भावस्था के दौरान उनकी देखभाल डॉ. शिखा परमार कर रही थीं। पहले बताया सिजेरियन होगा, फिर नॉर्मल डिलीवरी की उसका आरोप है कि डॉ. शिखा ने पहले बताया था कि मोनिका की डिलीवरी सिजेरियन से होगी, क्योंकि उनकी पहली संतान भी ऑपरेशन से हुई थी। लेकिन उस दिन सुबह 9 बजे जब मनोज अपनी पत्नी को तेज दर्द के साथ अस्पताल लेकर पहुंचे, तो डॉ. शिखा ने सामान्य डिलीवरी की बात कही। मनोज को यह बात थोड़ी अटपटी लगी, लेकिन डॉक्टर पर भरोसा करते हुए उन्होंने कुछ नहीं कहा। डिलीवरी के बाद ब्लडिंग नहीं रुकी उन्होंने बताया कि दोपहर 2:20 बजे मोनिका ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। डॉ. शिखा ने मनोज को आश्वासन दिया कि जच्चा और बच्चा दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं। करीब आधे घंटे बाद, जब मोनिका को एक बेड से दूसरे बेड पर शिफ्ट किया जा रहा था तो उसने देखा कि उनकी पत्नी को अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा था। घबराए हुए मनोज ने तुरंत डॉ. शिखा को इसकी जानकारी दी, लेकिन डॉ. शिखा ने इसे सामान्य स्थिति बताकर टाल दिया। मनोज का कहना है कि उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया गया। न तो मोनिका को तुरंत आईसीयू में भर्ती किया गया, न ही उनकी हालत को देखते हुए किसी उच्च सुविधा वाले अस्पताल में रेफर करने की बात की गई। समय बीतता गया और मोनिका की हालत बिगड़ती चली गई। वह बार-बार अस्पताल के स्टाफ से अपनी पत्नी की स्थिति के बारे में पूछता रहा। वह चिल्लाता रहा कि उसकी वाइफ को बचा लो, लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिले। शाम 6:40 बजे जब मोनिका की हालत पूरी तरह बिगड़ चुकी थी और वह बेजान-सी हो गई थीं, तब जाकर डॉक्टरों ने मनोज को बताया कि मोनिका को बेहोशी का इंजेक्शन दिया गया है और उन्हें दूसरे अस्पताल में रेफर किया जा रहा है। रेफर करते ही हो गई मौत उस समय तक बहुत देर हो चुकी थी। मनोज को यह जानकर गहरा सदमा लगा कि अस्पताल के पास तुरंत मरीज को ले जाने के लिए एम्बुलेंस तक की व्यवस्था नहीं थी। कुछ देर बाद जब मनोज ने अपनी पत्नी को देखा, तो उनकी सांसें थम चुकी थीं। डॉक्टर और स्टाफ पर लगाया लापरवाही का आरोप उसने आरोप लगाया कि मोनिका की मृत्यु डॉ. शिखा और सक्षम अस्पताल के स्टाफ की लापरवाही का नतीजा है। अगर समय रहते मोनिका की स्थिति को गंभीरता से लिया जाता, अगर उन्हें तुरंत आईसीयू में शिफ्ट किया जाता या किसी बड़े अस्पताल में रेफर किया जाता, तो शायद उसकी जान बच जाती। परिजनों ने की सख्त कार्रवाई की मांग मोनिका के चाचा संदीप यादव ने भी इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग की। उन्होंने अस्पताल और डॉ. शिखा की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया है। संदीप ने बताया कि हमारी बेटी की जान बचाई जा सकती थी। यह लापरवाही नहीं एक तरह से जानबूझ कर की गई मौत है। मनोज का कहना है कि वह चाहते हैं कि उनकी पत्नी को न्याय मिले, ताकि भविष्य में कोई और परिवार ऐसी त्रासदी का शिकार न हो। इस मामले में पुलिस ने शिकायत दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
गुरुग्राम में डॉक्टर की लापरवाही हुई प्रसूता की डेथ:पति चिल्लाता रहा, मेरी वाइफ को बचा लो, CMO की रिपोर्ट पर पांच महीने बाद केस
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