पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) में विरोध प्रदर्शन करने पर रोक लगाने और नए छात्रों से हलफनामा भरवाने के फैसले के खिलाफ छात्रों ने मोर्चा खोल दिया है। पीयू के 2 छात्रों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू को पत्र लिखकर इस मामले में स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करने की मांग की है। पीयू प्रशासन ने नए शैक्षणिक सत्र में दाखिला लेने वाले छात्रों के लिए एक नया नियम लागू किया है, जिसके तहत छात्रों को हलफनामा देना होगा कि वे यूनिवर्सिटी कैंपस, हॉस्टल एरिया (सेक्टर 14 और 25), किसी कॉलेज या क्षेत्रीय केंद्र में प्रदर्शन, धरना, रैली या किसी तरह के विरोध कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगे। अगर किसी छात्र को कोई शिकायत है और वह विरोध करना चाहता है, तो उसे पहले सक्षम अधिकारी से अनुमति लेनी होगी। बिना इजाजत प्रदर्शन करने पर छात्र को परीक्षा में बैठने से रोका जा सकता है। दोबारा उल्लंघन पर उसका दाखिला रद्द किया जा सकता है और उसे यूनिवर्सिटी से निष्कासित भी किया जा सकता है। हलफनामे में ये शर्तें विश्वविद्यालय परिसर में किसी प्रदर्शन के लिए बाहरी लोगों को बुलाने पर रोक किसी भी प्रकार का हथियार या आग्नेयास्त्र ले जाने पर पाबंदी उल्लंघन की स्थिति में छात्र चुनाव लड़ने या हिस्सा लेने के लिए अयोग्य हो जाएगा बार-बार नियम तोड़ने पर यूनिवर्सिटी की मान्यता भी रद्द की जा सकती है यह संविधान के खिलाफ है पीयू से कानून की पढ़ाई कर चुके करण सिंह परमार और मौजूदा स्नातकोत्तर छात्र अभय सिंह ने पत्र में लिखा है कि यूनिवर्सिटी द्वारा लगाया गया यह प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(बी) (शांतिपूर्ण एकत्र होने का अधिकार) का खुला उल्लंघन है। छात्रों ने कहा कि, “यह शर्त कि कोई छात्र दाखिला तभी पाएगा जब वह अपने नागरिक अधिकार छोड़ने का वचन देगा, बेहद खतरनाक परंपरा की शुरुआत है।” छात्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी एक ऐसा स्थान है जहां लोकतांत्रिक विचार, संवाद और असहमति की जगह होती है। ऐसे में शिक्षा प्राप्त करने के बदले मौलिक अधिकारों को त्यागना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि छात्र समुदाय को दबाने का प्रयास है।
चंडीगढ़ पीयू छात्रों ने हाईकोर्ट चीफ जस्टिस को पत्र लिखा:कहा-प्रदर्शन पर रोक हटे, नए छात्रों से हलफनामा लेना गलत, मौलिक अधिकारों का बताया उल्लंघन
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