Bihar Election 2025: एक बिहारी चाहे वो दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो, छठ के दौरान अपने घर पहुंचने की हर मुमकिन कोशिश करता है. मुश्किल चाहे जितनी आए, पैसे चाहे जितने लग जाएं, बात चाहे नौकरी पर ही क्यों न बन आए, लेकिन एक बिहारी छठ के वो दो-चार दिन अपने घर ही गुजारना चाहता है. और इस बार बिहार के विधानसभा चुनाव में बिहारियों के इसी छठ प्रेम का फायदा उठाने की कोशिश में सब के सब जुटे हुए हैं.
चुनाव आयोग की कोशिश है कि जो बिहारी छठ में घर आए, वो वोट देकर ही जाए लेकिन सियासी दलों की कोशिश है कि जो बिहारी छठ में घर आए, वो उसे ही वोट देकर जाए और इस कोशिश में अभी तक की सबसे बड़ी बढ़त बीजेपी को मिलती हुई दिख रही है.
बिहार में बहार होने और नीतीशे कुमार होने की बात तब बेमानी लगने लगती है जब छठ के दौरान लोग भेड़-बकरियों की तरह धंसे हुए, एक-दूसरे से गुत्थमगुत्था होते हुए ट्रेन, बस, जीप, कार जो भी मिल जाए, उससे घर पहुंचने को बेकरार रहते हैं. और ये भीड़ इस बात की गवाही देती है कि बिहार में परिवार के लिए दो रोटी का जुगाड़ भी तभी होगा, जब बिहार के लोग बिहार के बाहर किसी दूसरे राज्य में रोजगार करेंगे. लेकिन बिहार में सरकार तभी बनेगी, जब बिहार के बाहर रोजगार करने वाले लोग बिहार लौटकर वोट करेंगे.
वोटर्स का गणितचुनाव आयोग की मानें तो 24 जून 2025 तक बिहार में कुल वोटर हैं 7 करोड़ 89 लाख 69 हजार 844. राउंड फिगर मान लें 8 करोड़ और बिहार के बाहर रहने वाले वोटरों की संख्या है करीब-करीब तीन करोड़. यानी कि बिहार के कुल वोटर का करीब-करीब 37 फीसदी हिस्सा बिहार के बाहर है और ये वो आंकड़ा है जो अगर किसी को एकमुश्त वोट दे दे तो उसकी सरकार बननी तय है.
लिहाजा बीजेपी की नजर इन सभी तीन करोड़ वोटर पर है, जो देश के अलग-अलग राज्यों में मौजूद हैं. और इसके लिए बीजेपी ने करीब 150 नेताओं की टीम बनाई है, जो इन प्रवासी वोटरों को न सिर्फ चुनाव के दौरान बिहार आने के लिए प्रेरित करेगी, बल्कि कोशिश इस बात की भी है कि ये वोटर बीजेपी को ही वोट करें.
बीजेपी का प्लान
इस काम की जिम्मेदारी मिली है बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग और दुष्यंत गौतम को जो बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के साथ मिलकर उन परिवारों की पहचान कर रहे हैं, जो बिहार से बाहर हैं. बीजेपी नेताओं की ये टीम बिहार विधानसभा चुनाव का प्रचार बिहार में न करके देश के अलग-अलग राज्यों के उन जिलों में करेगी, जहां बिहार के ये वोटर मौजूद हैं.
बीजेपी की कोशिश है कि उसके नेता कम से कम एक बार व्यक्तिगत तौर पर ऐसे वोटर से मुलाकात कर लें. और उसके बाद फोन करके उन्हें बिहार आने और बीजेपी के लिए वोट करने को कहें. मीडिया रिपोर्ट्स तो यहां तक कहती हैं कि बीजेपी ने बाकायदा सवालों की एक लिस्ट भी तैयार कर ली है और उन सवालों के जरिए बीजेपी समर्थकों की अलग से पहचान की भी कोशिश की जा रही है.
बाकी केंद्र में बीजेपी की सरकार है और बिहार में बीजेपी समर्थित सरकार है तो इन वोटरों को देश के अलग-अलग हिस्सों से बिहार वापस लाने के लिए रेलवे की जो सहूलियत हो सकती है, उम्मीद है कि केंद्र के निर्देश में उसे भी पूरा किया जाएगा ताकि प्रवासी वोटरों को बिहार आने में कोई दिक्कत न हो.
चुनाव आयोग पर नजर
हालांकि सबकुछ चुनाव आयोग के बिहार चुनाव की तारीखों के ऐलान पर निर्भर है कि बिहार में चुनाव कब होंगे और चुनावी तारीख से छठ पूजा की तारीख में कितना अंतर आएगा. साल 2020 में बिहार में तीन चरणों में चुनाव हुए थे. 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को जबकि छठ पूजा वोटिंग खत्म होने के 10 दिन बाद थी. अब इस बार छठ पूजा 25 अक्टूबर को है. यानी कि साल 2020 की तुलना में करीब एक महीने पहले.
तो क्या चुनाव आयोग भी एक महीने पहले चुनाव करवाने को तैयार है. क्योंकि बिहारी छठ के लिए तो सारी मशक्कत कर सकता है, नौकरी दांव पर लगा सकता है, अपनी सारी बचत को एक झटके में खर्च कर सकता है, लेकिन वोट देने के लिए अगर उसे अलग से बिहार जाना पड़े तो वो एक बार नहीं एक हजार बार सोचेगा. ऐसे में अगर चुनाव छठ के वक्त नहीं होते तो बीजेपी के सारे किए कराए पर पानी भी फिर सकता है.