मोहम्मद रफी ने 1940 के दशक में फिल्मों में गाना शुरू किया। 1980 में उनकी मृत्यु तक वह भारत के सबसे पसंद किए जाने वाले गायकों में गिने जाते थे। हालांकि, एक समय ऐसा भी आया, जब रफी को अपनी खुद की सिंगिंग को लेकर शक हो गया था। हाल ही में शुभांकर मिश्रा को दिए एक इंटरव्यू में सिंगर सुधेश भोसले ने बताया कि एक समय ऐसा था जब संगीत के जानकार किशोर कुमार को सीरियस नहीं लेते थे क्योंकि वह शास्त्रीय रूप से प्रशिक्षित नहीं थे। हालांकि, कुछ सालों में माहौल बदल गया। वही प्रोड्यूसर्स और मीडिया के लोग, जो किशोर की तारीफ नहीं करते थे, उन्हें बेहतर गायक बताने लगे। मीडिया ने कहा कि किशोर जैसा कोई नहीं है, रफी साहब खत्म हो गए। सुधेश ने आगे बताया कि यहां तक किशोर को मीडिया से कहना पड़ा था, “इन तुलना को बंद करो। इससे दुख होता है क्योंकि मैं रफी साहब का सम्मान करता हूं।” सुधेश ने कहा कि उन्होंने अमित कुमार (किशोर कुमार के बेटे) से सुना था कि एक समय रफी से कहा गया था किशोर के लिए गाएं तो रफी ने कहा था, “उठाओ इसको, यह डूबता सूरज है।” अमित ने कहा था कि हालांकि, फिल्म ‘आराधना’ के बाद सब कुछ बदल गया। फिर लोग कहने लगे कि हीरो कोई भी हो, लेकिन किशोर का गाना होना चाहिए। उस समय किशोर उन्हीं हीरो के लिए गाने लगे जिनके लिए पहले रफी गाते थे। डिप्रेशन में चले गए थे रफी
रफी के बुरे दिनों पर बात करते हुए सुधेश ने इंटरव्यू में बताया, “हमने सुना है, कितनी सच्चाई है नहीं पता, रफी साहब डिप्रेशन में चले गए। उन्होंने दाढ़ी बढ़ा ली थी। वह नौशाद से मिलते थे और कहते थे ‘मैं गायक नहीं हूं।” सुधेश ने बताया कि नौशाद ने रफी का आत्मविश्वास लौटाया था। वहीं, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने ‘अमर अकबर एंथनी’ में गाना गाने के लिए रफी को बुलाया था क्योंकि फिल्म के डायरेक्टर मनमोहन देसाई उनके बड़े फैन थे। जिस पर रफी ने कहा था, ‘मुझे क्यों बुला रहे हो? मैं गायक नहीं हूं।’ लेकिन मनमोहन ने उन्हें प्रोत्साहित किया जिसके बाद रफी ने ‘पर्दा है पर्दा’, ‘शिरडी वाले साईं बाबा’ गाया।”
जब डिप्रेशन में चले गए थे मोहम्मद रफी:लोगों ने कहा था करियर खत्म, खुद बोले थे – मैं सिंगर नहीं हूं,फिर ऐसे लौटा आत्मविश्वास
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