जब मौत गले लगा लेती है तब चलता है इन दो कैंसर का पता, जानें क्यों होता है ऐसा

by Carbonmedia
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अक्सर लोग हेड एंड नेक कैंसर को सिर्फ माउथ कैंसर समझते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यह ग्रुप कई तरह के कैंसर को कवर करता है. इसमें ओरल कैविटी (मुंह), थ्रोट (गला), वॉइस बॉक्स (लैरिंक्स), नाक, साइनस, थायरॉइड, पैरोटिड ग्लैंड (सैलिवरी ग्लैंड) और यहां तक कि आई सॉकेट्स (आंखों का हिस्सा) तक के कैंसर शामिल हैं. लोग आमतौर पर इसे माउथ, गले या वॉइस बॉक्स के कैंसर से जोड़ते हैं, क्योंकि ये ज्यादा कॉमन हैं और इनका सीधा संबंध तंबाकू से है. चबाने वाला तंबाकू अक्सर माउथ कैंसर का कारण बनता है, जबकि स्मोकिंग से गले, वॉइस बॉक्स और एयरवे से जुड़ी बीमारियां होती हैं.
लेट डायग्नोसिस सबसे बड़ी समस्या
हेड एंड नेक कैंसर का सबसे बड़ा चैलेंज है डिले इन डायग्नोसिस (देरी से पहचान). ये देरी दोनों तरफ से होती है मरीज की तरफ से भी और डॉक्टर की तरफ से भी. डॉ. मंदीप सिंह मल्होत्रा, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली के अनुसार, “कई बार मरीज को माउथ अल्सर, व्हाइट पैच या आवाज में बदलाव जैसी समस्याएं होती हैं, लेकिन लोग इसे इन्फेक्शन समझते हैं. डॉक्टर भी शुरुआत में एंटीबायोटिक, दर्द की दवा या स्टेरॉयड देकर मैनेज करते हैं, जिससे सही डायग्नोसिस में समय लग जाता है.” यहां तक कि डेंटल प्रोफेशनल्स भी कई बार ऐसे लक्षणों का कई राउंड दवा से इलाज करते हैं. जब ये ट्रीटमेंट काम नहीं करते, तब जाकर कैंसर का शक होता है.
बायोप्सी से जुड़ीं गलतफहमियां
अगर माउथ में अल्सर, व्हाइट पैच, या रेड लीजन पहली दवा से ठीक न हों, तो तुरंत ऑन्कोलॉजिस्ट को दिखाना और बायोप्सी कराना जरूरी है. डॉ. मल्होत्रा कहते हैं, “सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग मानते हैं कि बायोप्सी से कैंसर फैल जाएगा. यह पूरी तरह मिथक है और मरीज की जान के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.”
इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी
थ्रोट, टॉन्सिल, बेस ऑफ टंग या लैरिंक्स के कैंसर की पहचान के लिए एंडोस्कोपी या लैरिंगोस्कोपी जैसे स्पेशल टेस्ट जरूरी होते हैं. ये सुविधाएं ज्यादातर बड़े शहरों के अस्पतालों में मिलती हैं. टियर-2 और टियर-3 सिटी में यह सुविधा नहीं होने से मरीजों को रेफर करने में देर होती है. दूसरी बड़ी दिक्कत है बायोप्सी रिपोर्ट का लंबा TAT (टर्नअराउंड टाइम). छोटे शहरों में सैंपल पहले लोकल लैब में जाते हैं, फिर वहां से मेट्रो सिटी के स्पेशल लैब में भेजे जाते हैं. इससे रिपोर्ट आने में काफी समय लग जाता है.
नई टेक्नोलॉजी से उम्मीद
लिक्विड बायोप्सी एक नया और आसान तरीका है, जिसमें सिर्फ ब्लड सैंपल से कैंसर मार्कर डिटेक्ट किए जा सकते हैं. हालांकि यह फाइनल डायग्नोसिस नहीं देता, लेकिन शुरुआती अंदाजा जरूर लग जाता है. रोबोटिक सर्जरी ने भी हेड एंड नेक कैंसर के इलाज में क्रांति ला दी है. खासकर उन मरीजों के लिए जिनके कैंसर गले के अंदर, बेस ऑफ टंग या टॉन्सिल में होते हैं. रोबोटिक सिस्टम से बिना चेहरे पर बड़े कट लगाए कैंसर हटाया जा सकता है. फ्रोजन सेक्शन एनालिसिस जैसी तकनीक से अब सर्जरी के दौरान ही 20 मिनट में बायोप्सी रिपोर्ट मिल जाती है. इससे तुरंत फैसला लिया जा सकता है और मरीज को बार-बार सर्जरी नहीं करवानी पड़ती.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
 

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