जम्मू में आपातकाल पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह का बड़ा बयान, कांग्रेस पर बोला हमला

by Carbonmedia
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Jammu and Kashmir News: जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि आपातकाल (1975-77) भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का एक काला अध्याय था, जिसे आने वाली पीढ़ियों को याद रखना चाहिए ताकि ऐसी पुनरावृत्ति से बचा जा सके.
उन्होंने बताया कि इस दौरान अनेक लोगों को बिना मुकदमे जेल में डाला गया, लाठीचार्ज, नजरबंदी और जबरन नसबंदी जैसे अत्याचार हुए. 
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि आपातकाल केवल राजनीतिक अधिकारों नहीं, बल्कि नागरिक स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा पर भी गहरा हमला था. इस दमनकाल में मजबूत नेता और नए विचार सामने आए. उन्होंने जयप्रकाश नारायण को लोकतंत्र का रक्षक बताया और नानाजी देशमुख द्वारा जेपी को बचाने के लिए जान जोखिम में डालने का उल्लेख करते हुए कहा कि आज देश को जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं की जरूरत है.
‘कांग्रेस ने कभी सच्चे बलिदानों को नहीं स्वीकारा’उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी, अरुण जेटली और चंद्रशेखर जैसे नेताओं ने कठिन हालात में नेतृत्व और साहस दिखाया. उन्होंने याद किया कि उस समय कई वरिष्ठ नेता जेल में थे, मीडिया पर सख्त सेंसरशिप थी और पत्रकारों को सच लिखने पर गिरफ्तार किया जाता था.
साथ ही बोले आपातकाल कांग्रेस की वैचारिक सोच का परिणाम था, न कि कोई अचानक घटना. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश अधिकारी ए.ओ. ह्यूम ने एक नियंत्रित मंच के रूप में की थी, न कि राष्ट्रवादी भावना से. उन्होंने पार्टी पर भाई-भतीजावाद, अधिनायकवाद और अवसरवाद का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस ने कभी सच्चे बलिदानों को नहीं स्वीकारा.
मदन लाल ढींगरा और वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों को कांग्रेस ने नज़रअंदाज़ किया. डॉ. सिंह ने यह भी कहा कि गांधीजी ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दरकिनार कर नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया, जबकि पटेल को अधिक समर्थन मिला.
‘कांग्रेस ने खुद को बचाने के किए कई संशोधन’उन्होंने कहा कि भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को फांसी दी गई, जबकि नेहरू विशेष सुविधाओं के साथ जेल में रहे. उन्होंने बताया कि 1974 के छात्र आंदोलन, गुजरात में कांग्रेस की हार और 1975 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद आपातकाल घोषित किया गया. कांग्रेस ने खुद को बचाने के लिए 38वां, 42वां और 43वां संविधान संशोधन लाए, जिससे संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया गया.
जम्मू-कश्मीर में यह बदलाव स्थायी बना रहा. उन्होंने चेतावनी दी कि आपातकाल भले खत्म हो गया हो, लेकिन उसकी मानसिकता आज भी जीवित है, जिससे लोकतंत्र को सतर्क रहकर बचाना जरूरी है.

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