जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ क्यों दर्ज नहीं हुई FIR? संसदीय समिति की बैठक में उठा कैशकांड का मामला

by Carbonmedia
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Justice Yashwant Verma: जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले पर अब केंद्र सरकार सख्त होते हुए नजर आ रही है. सूत्रों के मुताबिक, अब सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज के लिए आचार संहिता तैयार करने पर विचार कर रही है. वहीं, मंगलवार (24 जून) को राज्यसभा की कार्मिक, विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की बैठक में विधि मंत्रालय के सचिव पेश हुए. इस दौरान उनसे कई मुद्दे पर सदस्यों ने सवाल पूछे हैं.
सूत्रों के अनुसार, मामले पर सदस्यों ने पूछा कि जस्टिस वर्मा के मामले में एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई? इसके अलावा यह भी सवाल उठा कि जब जज को सस्पेंड करने का कोई प्रावधान नहीं है, तो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने उनसे केस कैसे वापस ले लिए? अगर गंभीर मामला था तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? वहीं, कुछ सदस्यों ने यह भी सवाल उठाया कि जस्टिस यशवंत वर्मा को अब भी कार, स्टाफ जैसी सुविधाएं मिल रही हैं, जो अनुचित है?
जजों के लिए आचार संहिता सिर्फ कागजों तक सीमित
इस दौरान आचार संहिता पर चर्चा हुई है. समिति की बैठक में यह बात उठी कि जजों के लिए आचार संहिता केवल कागजों तक सीमित है, इसका पालन जमीनी स्तर पर नहीं होता है. यह भी कहा गया कि जहां सभी अधिकारी अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करते हैं, वहीं, जज ऐसा नहीं करते, जिससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं.
जबकि राजनीतिक संगठनों से जुड़ी गतिविधियों में भागीदारी पर आपत्ति जताई गई है. कुछ सदस्यों ने राजनीतिक रूप से संबद्ध कार्यक्रमों में जजों की भागीदारी पर आपत्ति जताई, इसमें अप्रत्यक्ष रूप से कुछ हालिया कार्यक्रमों का उल्लेख था. वहीं, राजनीतिक लाभ के लिए नियुक्तियों का मुद्दा भी बैठक में हुआ है. यह भी आरोप लगाया गया कि कुछ जज राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाकर ‘प्लम पोस्टिंग’ (लाभकारी पद) लेते हैं.
इसके अलावा परिवारजनों की वकालत को लेकर चिंता व्यक्त की गई है. कई सदस्यों ने न्यायिक संस्थानों में ही रिश्तेदारों की वकालत को लेकर चिंता जताई और कहा गया कि सिर्फ यह कहना कि कोई वकील अपने रिश्तेदार जज की कोर्ट में पेश नहीं होता, काफी नहीं है, पूरे न्यायिक परिसर में रिश्तेदारी की उपस्थिति पर पुनर्विचार होना चाहिए.
बैठक में वीरस्वामी मामले की समीक्षा के लिए दिया गया सुझाव
सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, बैठक में वीरस्वामी मामले की समीक्षा का सुझाव भी सामने आया है. इसके साथ ही न्यायाधीशों की आचार संहिता और सेवानिवृत्ति के बाद कूलिंग-ऑफ पीरियड लागू करने को लेकर भी प्रस्ताव दिया गया है.

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