जालंधर के मदर ग्रिड से बड़िंग सब स्टेशन तक नया एचटीएलएस कंडक्टर बिछेगा, कैंट के लोगों को राहत

by Carbonmedia
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प्रवीण पर्व | जालंधर बड़िंग बिजली ग्रिड अपग्रेड होगा। कैंट में रहने वाले करीब 65,000 लोगों को बिजली लाइनों की ओवरलोडिंग से राहत मिलेगी। वर्तमान गर्मी के सीजन में नए एयर कंडीशनरों के इस्तेमाल से बड़िंग बिजली ग्रिड की कैपेसिटी लगभग पूरी हो गई। लेकिन अब पावरकॉम के ट्रांसमिशन विंग ने नई योजना तैयार कर ली है। इसे मंजूरी मिल गई है। इसके तहत पहली बार भाखड़ा बयास मैनेजमेंट बोर्ड के 220 केवी ग्रिड से लेकर बड़िंगा बिजली ग्रिड तक नया हाई टेंपरेचर लो सैग कंडक्टर बिछाया जाएगा। इसकी कीमत 10 करोड़ रुपए से अधिक है। ये 76 किलोमीटर कंडक्टर बिछाने की योजना का हिस्सा है। अगले महीने से काम आरंभ होगा। इसी साल नई बिजली लाइन से सेवा आरंभ हो जाएगी। डिप्टी चीफ इंजीनियर एसपी सोंधी कहते हैं – ये योजना तकनीकी तौर पर बहुत विशेष है। वर्तमान बिजली लाइन के टावरों पर ही नया कंडक्टर स्थापित होगा। इससे समय, पैसे की बचत होती है। बड़िंगा गांव जालंधर कैंट में है। ये जालंधर-फगवाड़ा हाईवे के पास है। ये सामरिक अहमियत वाला ग्रिड है। यहां से कैंट को बिजली मिलती है। कैंट में गांव-मोहल्लों सहित करीब 60 हजार की आबादी है। बड़िंग ग्रिड को साल 2000 में बादशाहपुर ग्रिड से जोड़ा गया था। इसे दोहरी बिजली सप्लाई मिलती थी। एक साइड से बीबीएमबी ग्रिड से बिजली मिलती है और दूसरी साइड से बादशाहपुर ग्रिड से बिजली सप्लाई मिलती है। मकसद था कि जब एक साइड से बिजली बंद हो तो दूसरी तरफ से ग्रिड चालू रखा जा सके। ये 50 साल पुराना ग्रिड है। साल 2005 में इसमें पुराने उपकरण निकालकर नए उपकरण लगाए गए थे। अब ग्रिड की लाइन की कैपेसिटी नई टेक्नोलॉजी से बढ़ाई जा रही है। नए एचटीएमएस कंडक्टर में लोहे की तार की जगह कार्बन फाइबर होगी नए हाई टेंपरेचर लो सैग कंडक्टर यानी एचटीएलएस कंडक्टर में खास तकनीक है। इसके नाम से ही सारी खासियत पता चल जाती है। पारंपरिक कंडक्टर के अंदर लोहे की मोटी तार होती है। ऊपर एल्युमीनियम का कंडक्टर होता है। लोहे की तार व एल्युमीनियम का कंडक्टर एक दूसरे को ताकत देते हैं जिससे ऊंचे टावरों पर ये बंधी रहती है। जो नया कंडक्टर अब स्थापित किया जाएगा, इसके अंदर कंडक्टर के अंदर लोहे की तार की जगह कार्बन फाइबर होता है। ये फाइबर करंट से पैदा होने वाले हाई टेंपरेचर को अधिक ताकत के साथ सह लेता है। कंडक्टर की कैपेसिटी भी दोगुनी होती है। ये तार टावर पर बांधे जाने के बाद अधिक झूलती नहीं है। ये वजन में हलकी होती है। इस कारण नए टावर नहीं बनाने पड़ते। पुराने टावरों पर की नया कंडक्टर स्थापित किया जाता है।

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