जालंधर में प्रसिद्ध श्री बाबा सोढल मेला आज:भारी मात्रा में श्रद्धालु माथा टेकने पहुंच रहे, बाजार सजा; पढ़ें मंदिर का इतिहास

by Carbonmedia
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जालंधर का प्रसिद्ध श्री सिद्ध बाबा सोढल मेला शुक्रवार और शनिवार की मध्यरात्रि 12 बजे रिवायती परंपरा के अनुसार शुरू हो गया है। मेले के शुभारंभ के साथ ही श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा और हजारों की संख्या में लोग शुक्रवार से शनिवार को ही माथा टेकने मंदिर पहुंच गए। सोढल मेले के आसपास का करीब 3 किलोमीटर के एरिया पूरी तरह से सजा हुआ है, हर जगह पर झूले और बाजार सजे हुए हैं। हालांकि इस बार बारिश और बाढ़ के कारण श्रद्धालुओं में की संख्या में कमी आई है और कारोबार पर भी काफी असर पड़ा है। मेले में सुरक्षा के लिए तैनात हैं 1200 से अधिक सुरक्षाकर्मी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने कड़े इंतजाम किए हैं। करीब 1200 से अधिक पुलिसकर्मियों को मेले की सुरक्षा में तैनात किया गया है। साथ ही, मंदिर की ओर जाने वाले मुख्य रास्तों पर भारी वाहनों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। यातायात को सुचारु रखने के लिए रूट डायवर्ट किए गए हैं। वहीं, मंदिर के नजदीकी रेलवे फाटक भी मेले के दिनों में बंद रहेंगे ताकि किसी तरह की परेशानी न हो। मेले के दौरान मंदिर परिसर में अखंड भजन-कीर्तन, विशेष पूजा और भोग का आयोजन होता है। भक्त मंदिर के सरोवर में स्नान कर पवित्र जल का आशीर्वाद लेते हैं। महिलाएं और बच्चे विशेष रूप से इस मेले में बड़ी श्रद्धा से भाग लेते हैं। मेले की रौनक केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद खास मानी जाती है। क्या बाबा सोढल मेले का इतिहास, पढ़ें सोढल मेले का संबंध सिद्ध बाबा सोढल से है, जिन्हें जालंधर का बालक रूप में अवतार माना जाता है। मान्यता है कि बाबा सोढल का जन्म लगभग 700 साल पहले हुआ था। बचपन से ही उनमें अलौकिक शक्तियां थीं। कहा जाता है कि उनका निधन इसी स्थान पर हुआ और तभी से यहां हर साल भादों महीने में भव्य मेला लगता है। श्रद्धालु मानते हैं कि बाबा सोढल की कृपा से बच्चों की लंबी उम्र, परिवार की खुशहाली और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यही कारण है कि इस मेले में न सिर्फ पंजाब बल्कि देशभर से श्रद्धालु भारी संख्या में शामिल होते हैं। श्री सिद्ध बाबा सोढल का मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि पंजाब की आस्था, संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है।

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