जिंदा इंसान का दिमाग दो हिस्सों में काट दें तो क्या होगा? 1960 में हो चुके ऐसे अजीब एक्सपेरिमेंट

by Carbonmedia
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क्या आप यकीन करेंगे कि आपके दिमाग के दो हेमिस्फेयर दुनिया को अलग-अलग तरह से देखते हैं? उनके विश्वास, क्षमताएं और यहां तक कि पर्सनैलिटी भी थोड़ी अलग हो सकती हैं? कई टॉप साइकोलॉजी बुक्स इस पॉपुलर गलत धारणा को डिस्कस करती हैं कि लॉजिकल लोग लेफ्ट-ब्रेन वाले होते हैं और आर्टिस्टिक लोग राइट-ब्रेन वाले. 
यह पूरी तरह से सच नहीं है…हालांकि, यह बिल्कुल सही है कि दिमाग के लेफ्ट और राइट साइड अलग-अलग फंक्शन्स के लिए स्पेशलाइज्ड होते हैं. जैसे, लेफ्ट ब्रेन लैंग्वेज के कामों में ज्यादा कैपेबल होता है.  वहीं राइट ब्रेन स्पेशियल मैपिंग जैसे टास्क में कमाल का होता है. जब इन्हें अलग कर दिया जाए, तो वे दो बिल्कुल डिफरेंट पर्सन्स की तरह बिहेव करते लगते हैं.
क्या है स्प्लिट ब्रेन रिसर्च? 
1960 के दशक में, गंभीर मिर्गी के कुछ पेशेंट्स का ट्रीटमेंट एक बहुत ही कॉन्ट्रोवर्शियल प्रोसीजर से किया जाता था. कॉर्पस कैलोसम, जो दिमाग के दोनों हेमिस्फेयर को आपस में जोड़ता है और उन्हें कम्युनिकेट करने में हेल्प करता है, उसे सर्जरी करके काट दिया गया. यह ट्रीटमेंट इफेक्टिव रहा और इससे पेशेंट्स की मिर्गी ठीक हो गई. सबसे सरप्राइजिंग बात ये थी कि इसका पेशेंट्स की डेली लाइफ पर कोई बड़ा इम्पैक्ट नहीं पड़ा, वे नॉर्मल बिहेव करते रहे.
स्प्लिट-ब्रेन रिसर्च के चौंकाने वाले खुलासे
जब इस सर्जरी के बाद साइंटिस्ट्स ने इन मरीजों पर स्टडी की, तो उन्हें कुछ बेहद दिलचस्प बातें पता चलीं. इसने  ब्रेन वर्किंग को लेकर हमारी समझ को पूरी तरह बदल दिया.

दो अलग-अलग कॉन्शियसनेस: सबसे बड़ी बात जो सामने आई वो ये कि जब दोनों हेमिस्फेयर आपस में कम्युनिकेट नहीं कर पा रहे थे, तो वे कुछ हद तक अलग-अलग कॉन्शियसनेस की तरह बिहेव कर रहे थे. ऐसा लगता था जैसे एक ही बॉडी में दो अलग-अलग माइंड काम कर रहे हों.
स्पेशलाइज्ड फंक्शंस: इन एक्सपेरिमेंट्स ने प्रूव किया कि ब्रेन के दोनों हेमिस्फेयर अलग-अलग कामों में स्पेशलाइज्ड होते हैं: लेफ्ट हेमिस्फेयर मुख्य रूप से लैंग्वेज, लॉजिक और एनॉलिटिकल थिंकिंग के लिए रिस्पॉन्सिबल होता हैॅ. वहीं, राइट हेमिस्फेयर परसेप्शन, फेसेस पहचानना, इमोशंस और क्रिएटिविटी से जुड़ा होता है.
अजीब बिहेवियर: वैसे तो इन पेशेंट्स की पर्सनैलिटी, इंटेलिजेंस और इमोशंस में कोई बड़ा चेंज नहीं आया, लेकिन जब उन पर स्पेशल टेस्ट किए गए, तो कुछ अजीब बिहेवियर सामने आए. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी चीज को सिर्फ लेफ्ट आई (जो राइट हेमिस्फेयर से जुड़ी है) से दिखाया जाता था, तो पेशेंट उसे देख पाता था और लेफ्ट हैंड से पहचान पाता था, लेकिन बोलकर नहीं बता पाता था कि उसने क्या देखा, क्योंकि बोलने का सेंटर लेफ्ट हेमिस्फेयर में होता है.
लिमिटेड कम्युनिकेशन: इन पेशेंट्स में दोनों हेमिस्फेयर एक-दूसरे के बारे में इंफॉर्मेशन नहीं जानते थे. अगर कोई इंफॉर्मेशन सिर्फ एक हेमिस्फेयर को मिलती थी.

बता दें कि इन स्प्लिट ब्रेन एक्सपेरिमेंट्स को रोजर स्पेरी और माइकल गजानिगा जैसे साइंटिस्ट्स ने किया था. स्पेरी को इसके लिए 1981 में नोबेल पुरस्कार भी मिला था. इन अध्ययनों ने हमें दिमाग की लेटरलाइजेशन और कॉन्शियसनेस की प्रकृति के बारे में अभूतपूर्व जानकारी दी.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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