राजन गोसाईं | अमृतसर `क्या हुआ भाई कहां जा रहे हो? भाई मां बीमार है, उसे गुरु नानक देव अस्पताल में दाखिल कराया है, वहां जा रहा हूं। चलो भाई मैं भी चलता हूं आपके साथ और रिंकू-टिंकू और रमेश को भी बुला लेता हूं, अस्पताल में कई तरह के काम होते हैं, जरूरत के समय हम ही तो अपनों के साथ खड़े नहीं होंगे, तो कौन होगा।’ यह हमारे समाज का एक ऐसा ताना-बाना है, जिसके जरिए हम एक-दूसरे की मुसीबत में न सिर्फ काम आते हैं, बल्कि मुश्किल के समय में हरसंभव मदद के लिए आगे आते हैं। लेकिन हमारी ओर से की जाने वाली यह मदद अस्पताल प्रशासन के लिए सिर दर्द बनती जा रही है। जब तीमारदारों और मेहमानों को वार्ड से जाने के लिए कहा जाता है, तो बहसबाजी शुरू हो जाती है जो हाथापाई तक भी पहुंच जाती है। जीएनडीएच में एक मरीज के साथ 5-5 तीमारदार होने से अस्पताल प्रबंधन की परेशानियां बढ़ रही हैं। सीमावर्ती 5 जिलों अमृतसर, गुरदासपुर, पठानकोट, तरनतारन और फिरोजपुर से उपचार कराने के लिए सैकड़ों मरीज रोजाना आते हैं। मरीजों के साथ 5-5 तीमारदारों होने से न सिर्फ नर्सिंग स्टाफ, बल्कि डॉक्टरों को भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कोई आकर कहता है कि इलाज सही नहीं हो रहा है, तो किसी का कहना होता है कि डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ सही तरीके से न तो मरीज की देखभाल कर रहा है और न ही मरीज के साथ सही तरीके से बात ही कर रहा है। एक नर्स ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि एक मरीज के साथ एक समय पर एक ही तीमारदार होना चाहिए। इतना ही नहीं, अस्पताल एक ऐसी जगह है, जहां पर इन्फेक्शन ज्यादा होने का खतरा होता है। लेकिन मरीज अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी वार्ड में ले आते हैं। उन्हें ऐसा करने से रोकें, तो बच्चे की मां कई तरह के सवाल खड़े कर देती है। जीएनडीएच के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. कर्मजीत सिंह ने बताया कि हम किसी भी तीमारदार या उनके मेहमानों को रोक नहीं सकते, लेकिन उन्हें अस्पताल में शांति व्यवस्था के साथ-साथ सफाई व्यवस्था का भी ख्याल रखना चाहिए। अत्यधिक तीमारदारों और मेहमानों के चलते स्टाफ और डॉक्टरों को काम करने में कई तरह की दिक्कतों का तो सामना करना पड़ता ही है। इसके साथ ध्वनि प्रदूषण का भी सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं, मरीज को तो ग्लूकोज लगाया गया होता या उन्हें खिचड़ी अथवा दलिया ही खाने के लिए दिया जाता है लेकिन तीमारदार और मेहमान लॉबी में बैठ कर खाना खाते हैं और वहीं पर गंदगी फैला देते हैं, जिस कारण न सिर्फ इन्फेक्शन बढ़ने का खतरा रहता है, बल्कि आवारा कुत्ते और चूहे तक अस्पताल प्रशासन के लिए आफत बन जाते हैं।
जीएनडीएच में मरीज के साथ 5-5 तीमारदार, टेंशन में प्रबंधन
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