‘टूटे हुए दिलों का सहारा हुसैन है’, बिहार में मोहर्रम की 200 साल पुरानी परंपरा ‘बीबी का डोला’, गंगा जमुनी तहजीब की है मिसाल

by Carbonmedia
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Moharram In Arrah: इमाम हुसैन की याद में मनाए जाने वाले 10 दिनों के मोहर्रम की आज यानी बुधवार को छठी तारीख है. बिहार में भी मोहर्रम को लेकर जगह-जगह मातमी जुलूस निकाले जा रहे हैं. बिहार के आरा में कर्बला के शहीदों के नाम एक मातमी जुलूस जिसे “बीबी का डोला’ के नाम से जाना जाता है, निकाला गया. आरा शहर में ‘बीबी का डोला’ निकाले जाने की ये परंपरा 200 साल से भी ज्यादा पुरानी है.
कर्बला में हुई थी इमाम की बेटी की शादी 
कहते हैं कि इमाम हुसैन की एक बेटी की शादी कर्बला में जंग के दौरान उनके अपने ही चचाजाद भाई मो. कासिम अलैहिस्सलाम से हुई थी, जो इमाम हुसैन के भतीजे थे. रात में शादी हुई और सुबह इमाम हुसैन के भतीजे शहजादे कासिम अल्लाह की राह में शहीद होने के लिए यजीद की फौज से लड़ने चले गए. कासिम इमाम हुसैन के बड़े भाई हजर इमाम हसन के बेटे थे, शादी के बाद कासिम की शहादत हो गई और एक रात की दुल्हन यानी इमाम हुसैन की बेटी कुबरा बेवा हो गईं. उन्हीं की याद में आरा में बीबी का डोला निकाला जाता है.
इस बीबी के डोले में हिंदू मुस्लिम सभी धर्म की महिलाएं पहुंचती हैं और अपनी मन्नत मुरादें मांगती हैं, दिल से मांगी गई हर मुराद यहां पूरी भी होती है, यही वजह है कि आरा के डिप्टी शेर अली के इमामबाड़े में श्रद्धालुओं की भीड़ 6 मोहर्रम को देखते ही बनती है. औरतों की भीड़ ज्यादा होती है क्योंकि ये ‘बीबी का डोला’ है, इसलिए महिलाएं ही यहां ज्यादा पहुंचती हैं. 
इमामबाड़े से निकल कर बीबी का डोला शहर के विभिन्न चौक चौराहों पर पहुंचता है. आरा शहर के महाजन टोली न.1 से निकलने वाला ये जुलूस महादेवा रोड, धर्मन चौक, गोपाली चौक, शीश महल चौक, बिचली रोड होते हुए वापस धर्मन चौक, महादेवा रोड स्थित डिप्ली शेर अली के इमामबाड़ा में जाकर समाप्त हो जाता है. इस मौके पर नौहे खां रेयाज हुसैन और  और सैयद हसनैन ने “टूटे हुए दिलों का सहारा हुसैन है, “इंसानियत की आंख का तारा हुसैन है. और “है आज भी जमाने मे चर्चा हुसैन का” हर क़ौम कह रही है हमारा हुसैन है” पढ़ा, जिससे पूरा माहौल गमगीन हो गया.
जुलूस में शामिल विश्वभारती यूनिवर्सिटी से आए  प्रोफेसर सैयद एजाज हुसैन ने बताया कि इमाम हुसैन की याद में ये जुलूस आरा में 200 से भी ज्यादा सालों से निकाला जा रहा है. सभी धर्म के लोग इसमें शामिल होते हैं. उनकी आस्था है, जो जुलूस के दौरान दिखती है. हिंदू-मुस्लिम सद्भावना की मिसाल भी इस जुलूस में खूब देखने को मिलती है. क्या हिंदू क्या मुसलमान बीबी के डोले का इंतजार सभी को होता है, जैसे ही डोला शहर की सड़कों पर पहुंचता है, लोग अकीदत से झुक जाते हैं. 
शोकपूर्ण घटना की याद में किया जाता है मातम
बता दें कि कर्बला मे हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत को याद करके जुलूस में नौहा पढ़ा जाता है और मातम किया जाता है. शिया समाज के लोग विशेषकर काला वस्त्र पहनकर इस शोकपूर्ण घटना की याद में मातम, नौहा करते हुए शोक मनाते है. सभी समुदाय के लोग भी इस शोकपूर्ण घटना की याद में जुलूस के साथ शामिल रहते हुए अपना भरपूर सहयोग करते हैं. जिला प्रशासन की ओर से भी इस मौके पर सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम किया जाता है. 
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