भारत इंग्लैंड से अब तक 5 मैचों की टेस्ट सीरीज के 2 मैच खेल चुकी हैं। इन दोनों टेस्ट में दोनों टीम के कप्तानों ने बॉल के बदलने को लेकर अंपायर से कई बारे शिकायत की। ऐसे में इंग्लैंड में टेस्ट मैचों में इस्तेमाल होने वाली ड्यूक्स बॉल को लेकर कड़ी आलोचना हो रही है। इस पर इंडियन एक्सप्रेस ने ड्यूक्स बॉल को बनाने वाले दिलीप जगजोडिया से बातचीत की। उन्होंने कहा, इस बार इंग्लैंड में गर्मी ज्यादा है और पिचें सूखी व सपाट हैं। इन हालातों में गेंदबाजों को विकेट लेने में परेशानी हो रही है। अब तक खेले गए दो टेस्ट मैचों में कई बार दोनों टीमों ने अंपायर से गेंद बदलने की मांग की, क्योंकि गेंद बहुत जल्दी नरम हो जा रही है। भारत ने भले ही एजबेस्टन टेस्ट में इंग्लैंड के 20 विकेट लिए हों, लेकिन कप्तान शुभमन गिल ने भी माना कि गेंदबाजों के लिए ये मुश्किल हालात हैं। शुभमन गिल का बयान, गेंद बहुत जल्दी नरम हो जाती है, जिससे गेंदबाजी करना और विकेट लेना मुश्किल हो जाता है। विकेट में कुछ खास मदद नहीं है और गेंद जल्दी शेप खो देती है। ड्यूक्स बॉल के बारे में दिलीप जगजोडिया से सवाल-जवाब से जानिए सवाल: ड्यूक्स बॉल पर फिर से सवाल उठे हैं? जवाब: सिर्फ ड्यूक्स ही नहीं, SG और कूकाबुरा गेंदों की भी आलोचना होती रहती है। यह गेंदें नेचुरल चीजों से बनती हैं, 100% परफेक्ट नहीं हो सकतीं। हर टेस्ट में नई गेंद दी जाती है, लेकिन यह पहले से टेस्ट नहीं होती। आज के जमाने में बैट्समैन ताकतवर हो गए हैं और बल्ले भी भारी हो गए हैं, ऐसे में गेंदों को ज्यादा मार पड़ती है। सवाल: क्या गेंद जल्दी नरम हो जाती है? जवाब: हर गेंद को 80 ओवर तक चलना होता है और उसी के हिसाब से वह धीरे-धीरे नरम होती है। लेकिन आज के समय में खिलाड़ी और दर्शक जल्दी परिणाम चाहते हैं। अगर 30 ओवर में विकेट नहीं मिले तो खिलाड़ी तुरंत नई गेंद मांगने लगते हैं। फिर भी इस सीरीज में तो रिजल्ट आए हैं, भारत ने 20 विकेट भी लिए और मैच पांच दिन चला, इससे ज्यादा क्या चाहिए? सवाल: क्या गेंदों की आलोचना ठीक है? जवाब: क्रिकेट एक बदलता हुआ खेल है। इस बार गर्मी ज्यादा है, पिचें सूखी हैं और कवर की गई थीं, जिससे उनमें नमी नहीं है। ऐसे में रन बनना भी आसान हो गया है। अगर मैच ढाई दिन में खत्म हो जाए तो लोग कहते हैं गेंदबाजों को मदद मिल रही है। अगर 5 दिन में रिजल्ट आए तो फिर गेंद की आलोचना होने लगती है। सवाल: क्या ड्यूक्स बॉल बनाने की कोई तय प्रक्रिया है? जवाब: हां, हम पुराने ब्रिटिश मानकों के अनुसार गेंद बनाते हैं। मैं खुद हर गेंद को सेलेक्ट करता हूं। ये मशीन से नहीं बनती, यह एक कारीगरी है, इसलिए हर गेंद थोड़ी अलग हो सकती है। सवाल: क्या गेंद बनाना मशीन जैसा नहीं होता? जवाब: नहीं। इसमें प्राकृतिक सामग्री होती है और इंसानों द्वारा बनाई जाती है। इसमें थोड़े बहुत फर्क आ सकते हैं। सोचिए, एक ही गेंद पर दिन भर बल्ले से मार पड़ रही है, और फिर भी वो 80 ओवर चल रही है, ये अपने आप में एक चमत्कार है। सवाल: सॉफ्ट और हार्ड बॉल के बीच संतुलन कैसे बनाए रखते हैं? जवाब: अगर हम बहुत सख्त गेंद बनाएंगे तो बल्ले टूटने लगेंगे। हमें ध्यान रखना होता है कि नियमों के अनुसार गेंद 80 ओवर तक धीरे-धीरे खराब होनी चाहिए। अगर 20 ओवर में ही खिलाड़ी कहें कि गेंद काम नहीं कर रही, तो ये सही नहीं है। हां, अगर कोई असली खराबी है तो गेंद बदली जा सकती है।
ड्यूक्स बॉल बनाने वाले दिलीप-खुद हर गेंद सिलेक्ट करता हूं:30 ओवर में प्लेयर्स नई बॉल मांगते हैं; शुभमन बोले- जल्दी नरम हो रही गेंद
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