राजस्थान कन्हैया लाल हत्याकांड पर आधारित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) पर गंभीर आरोप लगाए हैं. संगठन का कहना है कि सेंसर बोर्ड ऐसी फिल्मों को मंजूरी देकर देश का माहौल खराब करने की कोशिश कर रहा है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के लीगल एडवाइजर सैयद मौलाना काब रशीदी ने कहा, ‘दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार (10 pgneR, 2025) को फिल्म की रिलीज पर अंतरिम रोक लगाकर एक बड़ा कदम उठाया है. यह फैसला जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की मांग पर आया, जिन्होंने दावा किया कि यह फिल्म समाज में नफरत और दंगे भड़काने का काम कर सकती है.’
केंद्र सरकार को एक सप्ताह में सुनाना चाहिए फैसला
सैयद मौलाना काब रशीदी ने कहा कि कोर्ट ने जमीयत को सिनेमैटोग्राफ एक्ट की धारा-6 के तहत केंद्र सरकार से शिकायत दर्ज करने के लिए दो दिन का समय दिया है. केंद्र सरकार को ऐसी शिकायत मिलने पर एक सप्ताह में फैसला लेना होगा.
जमीयत का कहना है कि फिल्म का ट्रेलर भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के विवादित बयान से शुरू होता है, जिसने साल 2022 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया था. इस बयान के बाद कई देशों ने भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाए थे और भाजपा ने नूपुर शर्मा को छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था.
भारतीय इतिहास और संस्कृति का अपमान
रशीदी ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘फिल्म में दारुल उलूम देवबंद और इससे जुड़े धार्मिक नेताओं को आतंकवादी के रूप में दिखाया गया है, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति का अपमान है. साथ ही पैगंबर साहब और उनसे जुड़े लोगों पर अभद्र टिप्पणियां की गई हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के 2022 के ‘हेट स्पीच’ फैसले का उल्लंघन है.’
रशीदी ने कहा कि ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केरल स्टोरी’ जैसी फिल्में भी विवादास्पद थीं. उन्होंने सेंसर बोर्ड पर निशाना साधते हुए कहा कि वह मनोरंजन के लिए फिल्में मंजूर करे, न कि नफरत फैलाने के लिए. जमीयत को भरोसा है कि कोर्ट से उन्हें पूरा इंसाफ मिलेगा. कोर्ट के इस फैसले को उन्होंने एक बड़ी घटना को रोकने वाला कदम बताया.
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‘दारुल उलूम देवबंद और इसके धार्मिक नेताओं को आतंकवादी दिखाया’, ‘उदयपुर फाइल्स’ पर बोला जमीयत उलेमा-ए-हिंद
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