नवतत्त्व और पच्चीस बोल में समाया जैन धर्म का सार : मुनि

by Carbonmedia
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भास्कर न्यूज | लुधियाना सिविल लाइंस स्थित जैन स्थानक में विराजमान जिन शासन रत्न, दिसायल केसरी, उपाध्याय भगवन श्री जितेन्द्र मुनि जी महाराज ने कहा कि जैन धर्म के गूढ़ रहस्यों को समझने के लिए नवतत्त्व और पच्चीस बोल का गहन अध्ययन आवश्यक है। मुनिश्री ने अपने ओजस्वी प्रवचनों में कहा कि इन सिद्धांतों को आत्मसात करने वाला ही मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हो सकता है। उन्होंने समझाया कि नवतत्त्व में जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष का उल्लेख है। यह तत्व आत्मा के उत्थान और कर्मबंधन से मुक्ति के मूल मंत्र हैं। मुनिश्री ने कहा कि सम्पूर्ण लोक में जीव और अजीव का ही समावेश है और परमात्मा की वाणी को सही मायनों में जानने के लिए इन तत्वों का ज्ञान अनिवार्य है। प्रवचन के दौरान मधुर वक्ता और व्याकरणाचार्य पूज्य श्री प्रभास सुरीजी म.सा. ने भगवान महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र का शुद्ध अध्ययन कराया और सम्यक्त्व पराक्रम का अत्यंत सरल और भावपूर्ण विवेचन किया। उन्होंने कहा कि जब मनुष्य के भीतर संवेग की भावना जागती है तो संसार उसे बोझिल और घुटन भरा लगने लगता है। इस घुटन से बाहर निकलने का प्रयास ही पराक्रम कहलाता है। उन्होंने आगे बताया कि संवेग से उत्पन्न अनुत्तर धर्म श्रद्धा को जन्म देता है, जो जीव को भव भ्रमण से मुक्ति दिलाता है। श्रद्धा का अर्थ है सत्य को अपनाना और उसे जीवन में उतारना। पूज्यश्री ने कहा कि जिन वाणी ही संसार और मोक्ष के बीच सेतु का कार्य करती है। प्रवचन के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और गहन धर्मचिंतन किया। जैन स्थानक परिसर धर्ममय वातावरण से गूंज उठा। उपस्थितजनों ने मुनिश्री और पूज्यश्री के प्रवचनों से आत्मा को जागृत करने की प्रेरणा ली।

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