न्यायालय के सिद्धांत के अनुसार अक्सर कहा जाता है कि भले ही गुनहगार छूट जाए लेकिन किसी निर्दोष को सजा नहीं मिले ठीक वैसा ही राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले में देखने को मिला है. राजस्थान हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक निर्दोष दिव्यांग व्यक्ति अमीचंद की रिहाई का आदेश देते हुए राज्य सरकार को उसे दो लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया है.
यह आदेश न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग की एकलपीठ ने दिया. अमीचंद पिछले दो महीने से जेल में बंद था, जबकि पुलिस की पुनः जांच में वह पूरी तरह निर्दोष पाया गया.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता कौशल गौतम ने पैरवी की. हाई कोर्ट ने तारानगर एडीजे द्वारा अमीचंद की रिहाई याचिका खारिज करने के आदेश को गलत ठहराते हुए कहा कि तकनीकी आधार पर किसी निर्दोष को जेल में रखना न्याय के मूल सिद्धांतों के विपरीत है.
अमीचंद 80-85% दृष्टिबाधित हैं और उनका घटनास्थल से कोई लेना-देना नहीं था. कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि है और संविधान में निहित मूल अधिकारों की रक्षा न्यायपालिका का प्रथम दायित्व है.
न्यायालय ने इस मामले में गंभीर टिप्पणियां करते हुए कहा कि यह केवल गलत जांच का मामला नहीं, बल्कि एक दिव्यांग निर्दोष व्यक्ति को जेल में डालकर प्रशासनिक लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी का भी परिचायक है. कोर्ट ने प्रथम जांच अधिकारी और संबंधित थाना प्रभारी (एसएचओ) के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश भी दिए हैं.
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों से आमजन के बीच न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर अविश्वास उत्पन्न होता है, जो लोकतंत्र के लिए घातक है. कोर्ट के इस फैसले को ‘रिपोर्टेबल जजमेंट’ घोषित किया गया है ताकि भविष्य में ऐसे मामलों में मार्गदर्शन के रूप में इसका उपयोग किया जा सके.
यह था मामला
चूरू जिले के तारानगर थाना क्षेत्र में हरि सिंह की शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई, जिसमें उनके भतीजे के अपहरण और मारपीट के आरोप लगे. पुलिस ने अमीचंद समेत कई लोगों पर आरोप पत्र पेश किया. हालांकि, अमीचंद 80-85% दृष्टिबाधित हैं और उनका घटनास्थल से कोई लेना-देना नहीं था. एक प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी द्वारा की गई पुनः जांच में यह साफ हो गया कि उन्हें झूठा फंसाया गया था.
निर्दोष दिव्यांग को हाई कोर्ट से मिला न्याय, तुरंत रिहाई और सरकार को मुआवजा देने का निर्देश
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