नीतीश, तेजस्वी या बीजेपी… बिहार में चुनाव आयोग के SIR से किसको होगा फायदा? सर्वे ने चौंकाया

by Carbonmedia
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बिहार में चुनाव आयोग वोटर लिस्ट में संशोधन कर रही है. इसको लेकर विपक्ष हो-हल्ला मचा रहा है. इस बीच राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने मुद्दे पर अपनी राय दी. उन्होंने कहा कि ये कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब आंकड़ा 41 लाख नाम हटाने की ओर इशारा करे तो सवाल उठना लाजमी है.
इस बार आयोग का कहना है कि ये नाम मृत व्यक्तियों, स्थानांतरित वोटरों और अनुचित या फर्जी नामों के रूप में हटाए जा रहे हैं. इनमें से लगभग 17 लाख नाम मृतक वोटरों के हैं. 12-13 लाख स्थानांतरित (shifted) वोटर और शेष 10-12 लाख नामों पर संदेह है कि ये डुप्लिकेट या फर्जी वोटर हो सकते हैं, लेकिन जब यह आंकड़ा चुनावी साल में सामने आता है तो विपक्ष सवाल उठाता है कि क्या यह केवल रूटीन प्रक्रिया है या राजनीतिक गणित को प्रभावित करने वाला कदम?
हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार, लोगों की राय विभाजित दिखती है कि 35% लोग मानते हैं कि अवैध वोटरों को हटाना सही फैसला है. 16% लोग इसे केवल रूटीन प्रक्रिया मानते हैं. वहीं, 27% का मानना है कि अभी इसकी आवश्यकता नहीं थी, जबकि 15-17% लोग इसे राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित मानते हैं. यह स्पष्ट करता है कि जनता इस फैसले को लेकर confused और divided है.
क्या वाकई वोटिंग इंटेंशन पर पड़ेगा प्रभाव?न्यूज तक से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि अगर काटे गए वोटर पहले से मृत या स्थानांतरित हैं तो उनका हटना स्वाभाविक है. इससे चुनावी नतीजों पर कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर ऐसे लोग हटते हैं जो वास्तव में जीवित और स्थानीय वोटर हैं. उन्होंने खुद को पहले ही वोटर लिस्ट में दर्ज करा लिया था तो यह वोटिंग इंटेंशन को प्रभावित कर सकता है. जब तक यह स्पष्ट नहीं होता कि हटाए गए वोटरों में कितने वैध वोटर शामिल हैं, तब तक यह कहना मुश्किल है कि इस फैसले से कौन-सा गठबंधन प्रभावित होगा.
विपक्ष की चिंता डेटा के अभाव में संशयविपक्षी पार्टियां बार-बार यह मुद्दा उठा रही हैं कि आयोग यह नहीं बता रहा कि हटाए गए वोटरों में अवैध प्रवासी कितने हैं या कितने वोटरों ने दोहराव में नाम दर्ज कराया था. इस पारदर्शिता की कमी से यह मुद्दा और विवादास्पद बन गया है. ताज़ा सर्वे से ये संकेत मिलते हैं महागठबंधन (RJD + Congress) को थोड़ी बढ़त दिखाई दे रही है, लेकिन मुख्यमंत्री पद के पसंदीदा चेहरे में एनडीए थोड़ा आगे निकल रहा है. इसका मतलब है कि चुनाव अभी पूरी तरह खुला हुआ है. वोटिंग इंटेंशन स्थिर नहीं है और आखिरी समय पर बदलाव संभव है.
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