सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा के ऐतिहासिक बांके बिहारी मंदिर की प्रबंधन समिति से पता करने के लिए कहा है कि भारत में कितने मंदिरों का प्रशासनिक नियंत्रण सरकार ने कानूनों के जरिए अपने हाथ में लिया हुआ है.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार मंदिर की मैनेजमेंट कमेटी की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, ‘सरकार ने, राज्य ने, कितने सैकड़ों मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथ में लिया है? उन्हें जो भी दान मिल रहा हो… बेहतर होगा कि आप वहां जाएं और पता करें.’
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश-2025 के खिलाफ दायर की गई है. मथुरा स्थित ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर की प्रबंधन समिति ने एडवोकेट तन्वी दुबे के जरिए यह याचिका दायर की थी. याचिका में इस अध्यादेश को चुनौती दी गई है जिसमें मंदिर के प्रशासन का नियंत्रण राज्य सरकार को सौंप दिया गया है.
जब कोर्ट को बताया गया कि मंदिर से संबंधित एक अन्य आवेदन एक अलग पीठ के पास लंबित है, तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों मामलों को एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के आदेश की जरूरत है.
सुनवाई की शुरुआत में बेंच ने सवाल किया कि याचिकाकर्ता इलाहाबाद हाईकोर्ट के बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आए. कपिल सिब्बल ने पूरा विवाद बताते हुए कहा कि राज्य सरकार एक निजी धार्मिक संस्थान का प्रबंधन अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रही है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को एक कॉरिडोर (गलियारा) परियोजना के पुनर्विकास के लिए मंदिर निधि के 300 करोड़ रुपये का उपयोग करने की अनुमति दी है, इस फैसले को वर्तमान में चुनौती दी जा रही है.
संबंधित मामले में मंदिर के श्रद्धालु देवेंद्र गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट के 15 मई के आदेश को वापस लेने का अनुरोध करते हुए एक आवेदन दायर किया है, जिसमें तर्क दिया गया है कि यह आदेश मंदिर की प्रबंधन समिति का पक्ष सुने बिना पारित किया गया था.
सेवायत रजत गोस्वामी और 350 सदस्यों वाली मंदिर प्रबंधन समिति की याचिका में कहा गया है कि राज्य का आचरण दुर्भावनापूर्ण था क्योंकि पांच एकड़ भूमि के अधिग्रहण के लिए मंदिर निधि के उपयोग से संबंधित मुद्दे पर हाईकोर्ट आठ नवंबर, 2023 को पहले ही निर्णय दे चुका है और उसने राज्य को भूमि अधिग्रहण के लिए मंदिर निधि का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है.
समिति ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आठ नवंबर, 2023 के आदेश के खिलाफ अपील दायर नहीं की है और इसके बजाय उसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित याचिका में पक्षकार बनाए जाने के लिए आवेदन किया है.
याचिका में कहा गया है, ‘उक्त विशेष अनुमति याचिका गिरिराज सेवा समिति के चुनावों से संबंधित एक बिल्कुल अलग मुद्दे से संबंधित थी, जो बांके बिहारी जी महाराज मंदिर से बिल्कुल अलग मुद्दा है. सर्वोच्च न्यायालय ने 15 मई, 2025 के आदेश में अन्य बातों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश राज्य को मंदिर के धन का उपयोग करके पांच एकड़ भूमि अधिग्रहण करने की अनुमति देने का निर्देश दिया था.’
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के 15 मई के आदेश के खिलाफ एक आवेदन दायर किया गया, जिसका मुख्य आधार यह था कि न तो मंदिर और न ही सेवायतों को वर्तमान विवाद में कभी पक्षकार बनाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को राज्य की ओर से दायर पक्षकार बनाए जाने के एक आवेदन को स्वीकार कर लिया और मथुरा में ‘श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर’ को विकसित करने की उत्तर प्रदेश सरकार की योजना का मार्ग प्रशस्त कर दिया, जिससे बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को लाभ होगा.
इसने राज्य की इस याचिका को स्वीकार कर लिया कि बांके बिहारी मंदिर के धन का उपयोग केवल मंदिर के चारों ओर पांच एकड़ भूमि खरीदने के लिए किया जाए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर और ‘कॉरिडोर’ के विकास के लिए अधिग्रहित की जाने वाली भूमि देवता या ट्रस्ट के नाम पर होनी चाहिए.
‘पता करो देशभर के कितने मंदिरों को सरकार ने नियंत्रण में लिया है’, बांके बिहारी मंदिर समिति की आपत्ति पर बोला सुप्रीम कोर्ट
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