Moradabad News: उत्तर प्रदेश में पाकिस्तान और बांग्लादेश से आये शरणार्थियों को अब जंगल की भूमि पर मालिकाना हक मिलने वाला है क्योंकि इस मामले में मुरादाबाद मंडल के मंडलायुक्त आंजनेय कुमार सिंह की अध्यक्षता में बनी चार सदस्य कमेटी ने अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी है. जिसमें उत्तराखंड की तर्ज पर शरणार्थियों को ज़मीन का हक़ दिए जाने की संतुति की गयी है.
वर्तमान में लगभग 20 हजार शरणार्थी परिवार 50 हजार एकड़ भूमि पर काबिज हैं जिसे लगभग 5000 पांच हजार शरणार्थी परिवार अकेले मुरादाबाद मंडल में रहते हैं जिनमे सबसे अधिक बिजनौर और रामपुर जनपदों में मौजूद हैं. जिनमे अधिकतम पंजाबी सिख हैं इसके अलावा कुछ हिन्दू और मुस्लिम परिवार भी शामिल हैं.
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रामपुर जनपद में 2156 शरणार्थी परिवार और बिजनौर जनपद में लगभग 2800 शरणार्थी परिवार मौजूद हैं. इस समय रामपुर की स्वार तहसील क्षेत्र के 15 गांवों में शरणार्थी परिवार रहते हैं और जंगल की जमीन पर खेती करते हैं. दरअसल स्वार में आरक्षित वन श्रेणी के 23 गांव हैं. वर्तमान में वन क्षेत्र में आठ गांव हैं. शेष 15 गांव पीपली वन से दोराहा के आर्सल-पार्सल तक में बसे हैं. इन्हीं जंगली इलाके के बसावट वाले गांव क्षेत्र की बंजर एवं जंगल की जमीन पर वह खेती करते हैं, इन गांवों में स्कूल, आंगनबाड़ी, पंचायत घर, पानी टंकी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी हैं. कई शरणार्थियों के आलीशान दो मंजिल मकान भी बने हैं, लेकिन उनकी फसल का आंकड़ा सरकारी नहीं है.
आपदा आने पर फसल का कोई मुआवजा नहीं मिलता. खतौनी न होने से फसल सरकारी क्रय केंद्रों पर नहीं बेच पाते. कोऑपरेटिव सोसाइटी से खाद नहीं मिलती. बैंक से लोन भी नहीं मिलता है. यहां तक कि जिन गांवों को उनके पुरखों ने आबाद किया, उसकी शरणार्थियों को घरौनी तक नहीं मिली है. शरणार्थियों की वजह से आबाद जंगली क्षेत्र के गांवों में नबीगंज पिपली, खुदागंज, हुसैनगंज, पदमपुर, कुंवरपुर, अहमदनगर निकट पदमपुर, भगवत नगर, फाजलपुर, नूरपुर हजूरपुर, कल्याणपुर, मोहम्मद नकी, गोलू टांडा, दरियाब नगर, नयागांव नजीबाबाद, आर्सल-पार्सल हैं.
बिजनौर में ये शरणार्थी अलग-अलग 18 गांव में बसे हैं. लखीमपुर खीरी और पीलीभीत में अलग-अलग गांवों में या जंगलों के किनारे ये लोग बसाए गए. आन्जनेय कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ शरणार्थी परिवारों को तब गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट (सरकारी भूमि अनुदान अधिनियम) के तहत जमीन दी गई थी. ग्राम सभा और विभिन्न विभागों की स्वामित्व वाली जमीन पर भी बसाया गया और उन्हें पट्टे दिए गये थे लेकिन उनका दाखिल ख़ारिज नहीं हुआ और खतौनी में नाम दर्ज नहीं हुआ.
मानक क्या होगा ?
वर्तमान में गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट समाप्त हो चुका है. इन शरणार्थी परिवारों को दी गई जमीन पर पूर्ण स्वामित्व यानी संक्रमणीय भूमिधर अधिकार देने के लिए अलग से कानून बनाने की आवश्यकता होगी, ताकि इन मामलों में मौजूदा नियम शिथिल किए जा सकें. उत्तराखंड के कई जिलों में स्वामित्व देने का काम जमीन का कुछ प्रतिशत मूल्य लेकर किया जा चुका है. उत्तराखंड की तरह ही यहां भी कुछ मूल्य लेकर या निशुल्क संक्रमणीय भूमिधर अधिकार दिया जा सकता है.
अलबत्ता, कुछ शरणार्थी परिवार आरक्षित श्रेणी की वन भूमि, चरागाह और तालाब पर भी बसे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन्हें अन्यत्र जमीन देने या फिर उसी जमीन पर स्वामित्व अधिकार देने के लिए कानून में बदलाव करने पर विचार करना होगा. यहां बता दें कि वन भूमि पर अधिकार देने के लिए केंद्र सरकार के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की अनुमति भी लेनी होगी.
वहीं, नियमानुसार ग्राम सभा की भूमि उसी गांव के मूल निवासियों को दी जा सकती है. इसी तरह से विभागों की भूमि देने का अधिकार भी संबंधित विभागों को ही है. शरणार्थी परिवार को कितनी भूमि दी जा सकती है उसका मानक क्या होगा ? यह सब सरकार को तय करना है.
मुरादाबाद मंडल के मंडल आयुक्त आंजनेय कुमार सिंह ने बताया कि उनकी अध्यक्षता वाली चार सदस्य यह कमेटी 8 अगस्त 2024 को बनी थी. इसमें हमने पाकिस्तान और बाग्लादेश से आये शरणार्थियों का सर्वे कराया और जनप्रतिनिधियों और सम्बंधित अधिकारियों के साथ कई बार बैठकें की और समय समय पर शासन से जो निर्देश मिले रहे उसके अनुसार सुधार और संशोधन भी किए गये और शरणार्थी परिवारों से उनके दस्तावेज़ और हलफनामे लिए गये और ज़मीन का ब्यौरा लिया गया. सब कुछ रिपोर्ट में पूरा होने के बाद रिपोर्ट शासन को भेज दी गयी है.