पुलिसवालों ने सादे कपड़ों में चलाई कार ड्राइवर पर गोली, यह ऑफिशियल ड्यूटी नहीं- सुप्रीम कोर्ट

by Carbonmedia
()

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सादे कपड़े में किसी वाहन को घेरने और उसमें सवार लोगों पर संयुक्त रूप से गोलीबारी करने वाले पुलिसकर्मियों के आचरण को लोक व्यवस्था के तहत कर्तव्य पालन नहीं माना जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में पंजाब के 9 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या के आरोपों को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी है.
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) परमपाल सिंह पर लगाए गए साक्ष्य नष्ट करने के आरोप को भी बहाल कर दिया, क्योंकि उन्होंने साल 2015 में गोलीबारी की घटना के बाद कार की नंबर प्लेट हटाने का निर्देश दिया था. इस घटना में एक चालक मारा गया था.
मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह माना गया है कि आधिकारिक कर्तव्य की आड़ में न्याय को विफल करने के इरादे से किए गए कार्यों को शामिल नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि डीसीपी और अन्य पुलिस कर्मियों के खिलाफ उनके कथित कृत्यों के लिए मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं है.
पीठ ने हाल ही में कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए गए 29 अप्रैल के अपने आदेश में 9 पुलिस कर्मियों की अपीलों को खारिज कर दिया, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 20 मई 2019 के आदेश को चुनौती दी गई थी. उक्त आदेश में उनके खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया था.
हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई मामला नहीं- कोर्ट
पीठ ने कहा कि रिकार्ड में मौजूद सामग्री का अवलोकन करने के बाद कोर्ट का मानना है कि हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई मामला नहीं बनता है. सुप्रीम कोर्ट ने 8 पुलिस कर्मियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ शिकायत का संज्ञान नहीं लिया जा सकता, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 197 के तहत ऐसा करना वर्जित है. जिसके तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है.
पीठ ने कहा, ‘‘इस तरह का आचरण, अपनी प्रकृति के अनुसार, लोक व्यवस्था बनाए रखने या वैध गिरफ्तारी करने के कर्तव्यों से कोई उचित संबंध नहीं रखता है.’’ डीसीपी परमपाल सिंह से जुड़े मामले पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि यदि कोई कृत्य संभावित साक्ष्य को मिटाने के लिए किया गया हो, तो अंततः साबित होने पर भी उसे किसी भी वास्तविक पुलिस कर्तव्य से जुड़ा हुआ नहीं माना जा सकता.
सीआरपीसी की धारा 197 लागू नहीं होती- पीठ
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि जहां आरोप ही साक्ष्यों को दबाने का है… ऐसी स्थिति में सीआरपीसी की धारा 197 लागू नहीं होती और संज्ञान लेने के लिए मंजूरी कोई पूर्व शर्त नहीं है.’’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक शिकायत में आरोप लगाया गया है कि 9 पुलिसकर्मियों ने हुंदै आई-20 कार को घेर लिया, आग्नेयास्त्रों के साथ उतरे और एक साथ गोलीबारी की, जिससे कार में सवार व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया.
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति नाथ ने कहा कि पुलिसकर्मियों को बुलाने का मजिस्ट्रेट का आदेश और उसके बाद आरोप तय करने का सत्र न्यायालय का आदेश इस आधार पर आगे बढ़ता है कि प्रथम दृष्टया संगठित आग्नेयास्त्र हमले के सबूत मौजूद हैं.
क्या है साल 2015 का मामला?
शिकायत के अनुसार, 16 जून 2015 को शाम 6.30 बजे एक बोलेरो (एसयूवी), एक इनोवा और एक वरना (कार) में यात्रा कर रहे एक पुलिस दल ने पंजाब के अमृतसर में वेरका-बटाला रोड पर एक सफेद हुंदै आई-20 को रोका. इसमें कहा गया है कि सादे कपड़ों में 9 पुलिसकर्मी उतरे और थोड़ी देर की चेतावनी के बाद, पिस्तौल और राइफलों से नजदीक से गोलियां चला दीं, जिससे कार चालक मुखजीत सिंह उर्फ ​​मुखा की मौत हो गई.
इसमें दावा किया गया कि गोलीबारी की घटना के तुरंत बाद डीसीपी परमपाल सिंह अतिरिक्त बल के साथ पहुंचे, घटनास्थल की घेराबंदी की और कार की रजिस्ट्रेशन प्लेट हटाने का निर्देश दिया.
यह भी पढ़ें-
एक और बोइंग ड्रीमलाइनर बाल-बाल बचा? ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइट को बीच आसमान से लौटाना पड़ा वापस

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating / 5. Vote count:

No votes so far! Be the first to rate this post.

Related Articles

Leave a Comment