Eid-Al-Adha 2025: बकरीद 2025 से पहले जानवरों की कुर्बानी वाली परंपरा पर चर्चाओं का बाजार गर्म है. हिंदू सगठनों का कहना है कि किसी भी धर्म में जीव की जान लेना सही नहीं माना गया है, इसलिए बकरीद के पर्व पर मुस्लिम समुदाय को ऐसा करने से बचना चाहिए. इसी के साथ मध्य प्रदेश को भोपाल में ‘संस्कृति बचाओ मंच’ ने अजीब तरह की पहल की है.
संस्कृति बचाओ मंच की ओर से मुसलमानों से अपील की गई है कि इस बकरीद बकरों को असल में काटने के बजाय प्रतीकात्मक कुर्बानी दें. इसके लिए हिंदू संगठन ने मिट्टी से बने ‘इको फ्रेंडली’ बकरे तैयार किए हैं, जिसकी कीमत 1000 रुपये तय की है.
’इको फ्रेंडली बकरियों की दें कुर्बानी'
संस्कृति बचाओ मंच के संयोजक चंद्रशेखर तिवारी ने इस्लामिक धर्म गुरुओं को एक पत्र भेजा है, जिसमें यह लिखा गया है कि हिंदू धर्म में ‘इको फ्रेंडली’ होली, दिवाली और गणेश उत्सव मनाया जा रहा है तो ऐसे ही बकरीद क्यों न मनाई जाए? इसी के साथ उन्होंने दबाव दिया है कि बकरीद पर भी इको-फ्रेंडली बकरियों की कुर्बानी दी जाए.
न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए चंद्रशेखर तिवारी ने कहा, “संस्कृति बचाओ मंच बीते चार साल से मिट्टी के बकरे बना रहा है. इस साल इन बकरों की कीमत 1000 रुपये रखी गई है. अगर हम दिवाली पर इको फ्रेंडली पटाखे जलाते हैं. होली पर इको फ्रेंडली होलिका-दहन करते हैं, गणेश उत्सव पर गणपति की इको फ्रेंडली प्रतिमा बनाकर घर पर ही उनका विसर्जन करते हैं, तो फिर बकरीद पर मिट्टी के बकरों की कुर्बानी क्यों नहीं दे सकते?”
’पर्यावरण की रक्षा हमारी जिम्मेदारी'
हिंदू संगठन के संयोजक ने दावा किया है कि कुर्बानी के बकरों का खून साफ करने के लिए हजारों गैलन पानी बर्बाद किया जाता है. उन्होंने कहा कि भारत मां के पर्यावरण की रक्षा करना चार जवानों की जिम्मेदारी है- हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई.
उन्होंने कहा, “यह हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों की भी जिम्मेदारी है. हम इसके लिए जरूर कदम उठा रहे हैं. हमने मुस्लिम धर्म गुरुओं को इस मुद्दे पर पत्र भी लिखा है ताकि यह सकारात्मक संदेश पूरे समुदाय तक पहुंच सके.”